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________________ बच्छावत बात यह हुई कि बीकानेर के तत्कालीन राब कल्याणसिंहजी ने एक समय मन्त्री कर्मचन्दजी के सामने यह इच्छा प्रकट की कि मैं किसी तरह जोधपुर के गोखड़े पर बैठ जाऊँ। इस इच्छा की पूर्ति के लिये कर्मचन्दजी सम्राट अकबर की सेवा में भेजे गये। जिस समय आप दिल्ली पहुंचे, उस समय सम्राट अकबर शतरंज खेल रहे थे। उनकी शतरंज की चाल रुकी हुई थी। जो चाल वे चलते थे, उसी में हारते थे। कहा जाता है कि कर्मचन्दजी ने बादशाह को शतरण की ऐसी चाल बताई कि जिससे वे विजयी हो गये। इस पर बादशाह बहुत खुश हुआ। बादशाह की इस प्रसन्नता का कर्मचंदजी ने अपने स्वामी के लिए फायदा उठा लिया। उन्होंने बादशाह से अपने स्वामी के लिये जोधपुर के गोखड़े पर कुछ समय के लिये बैठने का परवाना ले लिया। इस सेवा से प्रसन्न होकर रावजी ने आपकी मांगी हुई नीचे लिखी बातों को स्वीकार कर स्वयं अपनी ओर से ४ गांव का मुहरदार पट्टा प्रदान किया । (1) चार माह चौमासे में कुम्हार, तेली, तम्बोली वगैरह भगता पालें। (1) वैश्यों से माल का कर न लिया जाय। . (३) भेड़ के ब्यापार में माल का जो चौथाई कर लिया जा रहा है, वह न लिया जाय । राव कल्याणसिंहजी के पश्चात् राव रायसिंहजी बीकानेर के स्वामी हुए। आपने भी अपने मंत्री के पद पर कर्मचन्दजी को ही रक्खा। कहना न होगा कि कर्मचन्दजी ने अपने नरेश की बड़ी-बड़ी सेवाएं की, इनके उद्योग से सम्राट अम्बर की ओर से रायसिंहजी को राजा का खिताब मिला । कर्मचन्दजी ने मुगल सम्राट् की भी बहुत सेवाएँ की थीं। आपने कुंवर रामसिंहजी के साथ दिल्ली पर आक्रमण करनेवाले मिर्जा इबाहिम से युद्ध कर उसे हराया। सम्राट की मदद के लिये गुजरात पर चढ़ाई की तथा मिर्जा महमद हुसैन को हरा कर उस पर विजय प्राप्त की। इन सेवाओं से प्रसन्न होकर सम्राट अकबर ने मंत्री कर्मचन्दजी की स्त्रियों को सोने के नुपूर पहनने का अधिकार दिया और आपका बड़ा सत्कार किया। (उस समय ओसवाल जाति में हिरन गौत्रीय स्त्रियों के अतिरिक्त अन्य स्त्रियों को पैरों में सोना पहनने का अधिकार न था।) मंत्री कर्मचन्दजी ने सोजत को बीकानेर राज्य के आधीन किया, जालोर के अधिकारी को परास्त किया तथा तुरमखां नामक व्यक्ति को मुहरें देकर उसके द्वारा कैद किये कुछ महाजनों को मुक्त करवाया, सिंध देश को बीकानेर में मिलाया तथा वहाँ की नदियों में मच्छी मारना बंद करवाया। हरफ़ा नामक स्थान में विलचियों को परास्त किया। इस प्रकार आपने कई समय अपनी वीरता एवम् प्रतिमा का परिचय दिया था।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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