SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 317
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्थानकवासी श्राचार्य्य संवत् १७४४ में १० वर्ष की आयु में श्री मुनि चैनऋषिजी से दीक्षा की । यहाँ पर यह कह देना आवश्यक है कि आपके पिता एवं पितामह भी जैन धर्म में दीक्षित हो गये थे । श्री इसका बड़ा प्रभाव पड़ा था। आपने जैन धर्म में दीक्षित होने के पश्चात् अपने अनेक जैन शास्त्रों का अध्ययन कर कई ग्रंथों की रचना की । आप बड़े विद्वान एवं तत्वों के अच्छे ज्ञाता हैं । आपकी लिखी हुई कई पुस्तकें एवं बड़े-बड़े ग्रन्थ जैसे:- जैन तत्व प्रकाश आदि २ । अमोलक ऋषिजी पर ज्ञान को बढ़ाया तथा वक्ता एवं जैन शास्त्रों प्रकाशित हो चुके हैं श्री सोहनलालजी - पंजाब के आचार्य श्री मोतीरामजी के पश्चात् आप ही उक्त गद्दी पर बिराजे । आप सियालकोट जिले के सम्बदयाळ गाँव वासी ओसवाल जातीय मथुरादासजी गधैया के पुत्र हैं। आपकी माताजी का नाम श्री लक्ष्मी देवी था। आपका जन्म संवत् १९०६ में हुआ । आपने अमृतसर नगर में संवत् १९३६ में दीक्षा ग्रहण की थी। आपके गुरु श्री धर्मचन्दजी आपके साहस, परिश्रम, ज्ञान तथा तर्क से बड़े प्रसन्न थे । आप संवत् १९५१ में युवाचार्य्यं तथा सम्वत् १९५८ में आचार्य पदवी से विभूषित किये गये हैं । आप बड़े तेजस्वी, गम्भीर एवं बाल ब्रह्मचारी हैं। युवावस्था में आपकी आवाज बड़ी बुलंद थी। आपको जैन शास्त्रों में जो ज्योतिष का वर्णन आया है, उसका बहुत अच्छा ज्ञान है । आप इस समय ८३ वर्ष के हैं। आप ४० वर्षों से निरंतर एकांतर वास कर रहे हैं तथा इस समय स्वाध्याय एवं पठन पाठन में अपना सारा समय व्यतीत करते हैं। जैन शास्त्रों के ज्योतिष में आपका बहुत विश्वास है। आपके सम्प्रदाय में इस समय कुल ७३ सुनि एवं ६० आर्य्याजी विद्यमान हैं। पूज्य श्री सोहनलालजी वृद्धावस्था होने के कारण भ्रमृतसर में ही स्थायी रूप से निवासकरते हैं। संवत् १९६९ में आपने अपने शिष्य श्री काशीरामजी को युवाचार्य्यं के पद से विभूषित किया । युवाचार्य श्री काशीरामजी का जन्म संवत् १९५० में पसरूर ( पंजाब ) में हुआ है। आप दूगड़ गौत्रीय ओसवाल सज्जन हैं। आप बड़े साहसी तथा योग्य साधु हैं। पंजाब की स्थानकवासी जैन जनता को आप से बहुत बड़ी आशा है । शतावधानी पं० मुनि श्री रत्नचन्द्रजी - आपका जन्म संवत् १९३६ में कच्छ मुन्द्रा के भारोरा नामक गाँव निवासी वीरपाल भाई ओसवाल के यहाँ हुआ । आप की माता का नाम श्री लक्ष्मीबाई है । आपका नाम उस समय रायसी भाई था । आप बड़े तीक्ष्ण बुद्धिवाले, कार्यं शील एवं धार्मिक सज्जन थे । आपने अपनी नवपत्नी के स्वर्गवास के वियोग में १८ वर्ष की आयु में दीक्षा ग्रहण करली । वर्त्तमान में आप जैनों के अग्रगण्य विद्वानों में गिने जाते हैं तथा आप अवधान निपुण होने के अतिरिक्त संस्कृत, प्राकृत एवं गुजराती भाषाओं के लेखक, कवि तथा अच्छे वक्ता है। आपने अनेक प्रन्थों की रचना की है। * आपके विशेष परिचय के लिए 'अवधान प्रयोग' नामक पुस्तिका में 'अवधान कर्त्ता का जीवन परिचय नामक शीर्षक में देखिये । * २३३
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy