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________________ श्रीसबाल जाति का इतिहास भोसवाल जाति के तांतेड़ गौत्रीय श्री बुद्धसिंहजी के पुत्र थे। आपका जन्म सम्वत् १८६२ में हुआ था । आप बड़े कान्तिवान और तेज पुत्र थे । आपने सम्वत् १८९८ में देहली में श्री रामलालजी के पास पांच महामतों की दोक्षा ली थी तथा सम्बत् १९१३ में आप आचार्य पदवी से विभूषित किये गये। आपने १२ साधु एवं १३ साध्वियों को दीक्षित किया। आप बड़े विद्वान तथा जैन धर्म के ज्ञाता थे। आपने पंजाब की जैन समाज में एक नवीन धार्मिक संगठन कर तथा उन्हें अपने अमूल्य व्याख्यानादि सुना कर उनमें एक नवीन स्फूर्ति पैदा कर दी थी । आप सम्बत् १९३६ में अमृतसर में ही निर्वाण पद को प्राप्त आपके पश्चात् अलवर के ओसवाल जातीय कोढ़ा गौत्र के सज्जन श्री रामबगसजी उक्त गद्दी पर हुए। बिराजे 'आपका जन्म सं० १८८३ में हुआ था । आपने सम्वत् १९०८ में जयपुर में दीक्षा की और ११ तक आवार्य्यं रह कर सम्वत् १९२९ में स्वर्गवासी हुए। आपके पश्चात् लुधियाना जिले के बहलोलपुर निवासी मुसद्दीलालजी खत्री के पुत्र श्री मोतीरामजी उत गद्दी पर विराजे । आपका जन्म सम्वत् aico में हुआ था । सम्वत १९१० में आपने पाँच महाव्रत धारण किये थे। आप को सम्वत १९३९ में सुर्य पदवी मिली थी। आप सम्वत १९५८ में स्वर्गवासी हुए । के प्रधान शिष्य हैं। पूज्य जवाहरलालजी - आप सुप्रख्यात आचार्य्यं श्री श्रीलालजी महाराज जैन साधुओं में आप अत्यंत प्रभावशाली, प्रतिमा सम्पन्न एवं विद्वान आचार्य हैं। देश की सामयिक, आवश्यकता की ओर आपका पूर्ण ध्यान है । जहाँ आप आपने अपूर्व उपदेशों के द्वारा हजारों लाखों लोगों के हृदयों को धर्म की दिव्य भावनाओं से परिप्लुत करते हैं वहाँ आप देश भक्ति और समाज सुधार के मार्ग से भी जनता को प्रगति शील बनाते हैं। आपके व्याख्यान बड़े ही स्फूर्तिदायक होते हैं और उनमें जीवन के भाव कूट २ कर भरे रहते हैं। पतितोद्धारक के लिए भी आप अपने व्याख्यानों में बड़ी जोरदार अपील करते हैं और जनता के हृदय को हिला देते हैं । विश्व बन्धुत्व का आदर्श रखते हुए इस दीनहीन भारत के लिए आपके हृदय में बड़ी लगन है और इसके धार्मिक, सामाजिक उत्थान के लिए आप अपने ढंग से प्रयत्न करते हैं। आपके उपदेशों से न केवल जैन जनता ही लाभ उठाती है वरन् सभी लोग आपके अपूर्व व्याख्यानामृत को पानकर बहुत शांति काम करते हैं । पूज्य श्री मन्नालालजी - आपका जन्म संवत् १९२१ में हुआ । आपके पिता का नाम श्री अमरचन्दजी पूर्व माताजी का नाम श्रीमती नादीबाई था । आप ओसवाल जाति के सज्जन थे । आपने अपने पिताजी के साथ संवत् १९३८ में श्री रतनचन्दजी ऋषि से दीक्षा ग्रहण की। आप आरम्भ से ही द्वेष रहित, प्रखर बुद्धिवाले एवं बड़े सुशील थे । आप संवत् १९७५ में आचार्य पद पर भारूद किये गये तथा उसी समय आपको शास्त्र विशारद की उपाधि भी दी गई। आप शास्त्रों के बड़े विद्वान, अच्छे वक्ता एवं सच्चरित्र सज्जन थे । आपका त्याग भी प्रशंसनीय था। * श्री अमोलक ऋषि जी +-1 --आप मेड़ते निवासी श्री केवलचन्दजी कांसटिया के पुत्र थे। आपने * आपके विशेष परिचय के लिए आदर्श मुनि नामक ग्रंथ देखिये । + आपके विस्तृत परिचय के लिए आप ही द्वारा लिखित जैन तत्व प्रकाश में श्री कल्याणमलजी चोरड़िया लिखित आपकी जीवनी देखिये । १६६
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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