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________________ ओसवाल जाति और नाबाद पद्मसुन्दरगणी आप तपगच्छ की नागपुरीय शाखा के पन भेस के शिष्य थे। इन्होंने रायमल्लाभ्युदय महा काव्य, धातु पाठ पार्श्वनाथ काव्य, जम्बू स्वामी कथानक वगैरा अन्यों की रचना की थी। इन्होंने अकवर के दरबार में धर्म विवाद में एक महा पंडित को पराजित किया था, जिससे प्रसन्न होकर बादशाह ने हार, एक गाय व सुखासन वगैरा वस्तुएँ आपको भेंट दी थीं। ये १९६० में विद्यमान थे। जिनसिंहरि __आप आचार्य जिनराजसूरिजी के शिष्य थे। इनका जन्म १०५ में, दीक्षा १६२६ में, सूरिषद १९७० में तथा स्वर्गवास संवत् १६०४ में हुआ। इनको संवत् १६४९ में देहली के बादशाह की ओर से बहुत सम्मान मिला । जोधपुर दरबार महाराजा सूरसिंहजी और उनके प्रधान कर्मचन्द्रजी इन्हें बहुत चाहते थे। जिनराजसूरि __ आप खरतरगच्छ में हुए हैं और बहुत प्रतिभाशाली माने जाते थे। इन्होंने शत्रुजयतीर्थ में ५०१ प्रतिमाएं स्थापित की। इसके अलावा आपने नैषधीय चरित्र पर "जिनराजी" नामक टीका रची संवत् १६९९ में पाटन में आपका स्वर्गवास हुआ । आनन्दघनजी महाराज ये प्रख्यात अध्यात्म ज्ञानी महाराज लगभग संवत् १६७५ में विद्यमान थे। वैराग्य सरा अध्यात्म विषय पर इन्होंने गटन पदों की रचना की थी। कल्याणसागरसूरि .माप अचलगच्छ के आचार्य धर्ममूर्ति सूरि के शिष्य थे। इन्होंने संवत् 2011 में जामनगर के प्रमुख धनाढ्य वर्धमानशाह द्वारा बनवाये हुए जिनालय में जिन विंव प्रतिष्ठित किये थे । उक जिनालय के शिलालेख से ज्ञात होता है कि यह जिनालय सूरिनी के उपदेश से ही बनाया गया था।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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