SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 290
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ औसवाल जाति का इतिहास ____श्री हेमचन्द्राचार्य ने कई काव्य ग्रन्थ भी लिखे हैं। आपका द्वाश्रय महाकाव्य अति महत्व का ऐतिहासिक ग्रन्थ है। उसमें विशेष कर चालुक्य वंश तथा सिद्धराज जयसिंह का दिग्विजय वर्णन है । आपका दूसरा काव्य कुमारपाल चरित्र है, वह भी काव्य चमत्कृति का एक नमूना है। आपका योग शास्त्र भी अपने विषय का अपूर्व ग्रन्थ है। इस विषय को आपने बड़ी ही सरलता के साथ समझाया है और विविध योग क्रियाओं का अनुभवपूर्ण वर्णन किया है। इसी प्रकार दर्शन शास्त्रों पर भी आपने बहुत कुछ लिखा है। आपका काव्यानुशासन ग्रन्थ साहित्यशास्त्र का एक अमूल्य रत्न है । इसी प्रकार आपका छंदानुशासन प्रन्थ काव्य-शास्त्र में अपना उच्च स्थान रखता है। आपने ४ कोष प्रन्थ भी लिखे हैं जो भारतीय साहित्य के बहुमूल्य रत्न हैं। इस प्रकार सैकड़ों ग्रन्थ लिख कर आपने साहित्य संसार में अमर कीर्ति पाई है। सुप्रख्यात् विद्वान आचार्य आनन्दशंकर ध्रुव का कथन है कि "ईसवी सन् १०८९ से लगाकर 11७३ तक का समय कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य के तेज से दैदीप्यमान हो रहा था।" इन प्रतिभाशाली आचार्य देव का स्वर्गवास सं० १२२९ में हुआ। रामचन्द्रसूरि आप श्री हेमचन्द्राचार्य के पट्टधर शिष्य थे। सिद्धराज जयसिंह ने आपको "कवि कटारमल" नामक उपाधि प्रदान की थी। आपने अपने रघुविलास, कौमुदी, आदि ग्रंथों में अपने आपको अचुम्बित काव्यतंद, विषीर्ण काम निर्माग तन्द्र, आदि विशेषणों से युक्त किया है। आपमें समस्या पूर्ति करने की अद्भुत् शक्ति थी। शब्द शास्त्र, काव्य शास्त्र तथा न्यायशास्त्र के आप बड़े पण्डित थे। यह बात आपने अपने नाव्य दर्पग विवृत्ति नामक ग्रंथ में भी प्रगट की है। महाकवि श्रीपाल कृत, "सहस्त्र लिंग सरोवर" की प्रशस्ति में काव्य दृष्टि से आपने कई दोष निकाल कर सिद्धराज को बतलाये थे। जिसका उल्लेख प्रबन्ध चिंतामणि नामक ग्रन्थ में किया गया है। जयसिंह कृत कुमारपाल चरित्र में लिखा है कि जव १२२१ में श्री हेमचन्द्राचार्य का स्वर्गवास हुआ और कुमारपाल को महाशोक हुआ तब रामचन्द्रसूरि ने अपने शांतिमय उपदेशामृत से उक्त राजा को बड़ी सान्त्वना दी थी। रामचन्द्र सूरि ने स्वोपज्ञ वृत्ति सहित द्रव्यालंकार और विवृित्ति सहित नाव्य दर्पण नामक अन्थों की रचना की। पहला ग्रन्थ जैन दर्शन से सम्बन्ध रखता है और उसमें जीव-द्रव्य, पद्गल द्रव्य, धर्म, अधर्म, आकाश, आदि का बहुत ही सूक्ष्म विवेचन किया है। दूसरा ग्रन्थ नाट्य शास्त्र सम्बन्धी है, इसमें नाटक, नाटिका, प्रकरण, प्रकरणी, न्यायोप, समवकार, भाण, प्रहसन डिम, भक, भादि १२ रूपक का • प्रभावक चरित्र श्लोक १२६ से १३७ तछ ।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy