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________________ ओसवाल जाति पार आचार्य के साथ राज दरबार में लाया गया । जब हाथी पर इस ग्रन्थ की सवारी निकल रही थी तब दो सुन्दरियाँ इस पर चंवर डुला रही थी। इसके बाद राजसभा में विद्वानों द्वारा इसका पठन करवाया गया। यह व्याकरण भारतवर्ष के विद्वानों में अत्यधिक विश्वसनीय और माननीय समझा जाता है। पाणिनी और शाकटायन को छोड़कर इस व्याकरण के बर बर किसी भी अन्य संस्कृत व्याकरण का आदर नहीं है। श्री हेमचन्द्राचार्य ने लोक कल्याण में अपने जीवन को समर्पित कर दिया था । वे महा. प्रभावशाली पुरुष थे । उन्होंने कोई ॥ लाख मनुष्यों को जैनधर्म का अनुयायी बनाया। उन्हीं के उपदेश से कुमारपाल ने जैनधर्म की बड़ी ही प्रशंसनीय प्रभावना की। जिस प्रकार आचार्य श्री ने सिन्द्वराज के आग्रह से सिद्ध हेम व्याकरण रचा उसी प्रकार आपने कुमारपाल के लिए योगशास्त्र, वीतराग स्तोत्र, त्रिशष्टि तलाका पुरुष चरित्र नामक ग्रन्थ रचे । इनके अतिरिक्त द्वयाश्रय, छंदोनुशासन, अलंकार, नाम संग्रह, आदि महत्वपूर्ण ग्रन्थ भी निर्मित किये । श्री हेमचन्द्राचार्य के जीवन को जगत में शाश्वत प्रकाशित रखने वाला उनका अगाध ज्ञान और उनके अलौकिक ग्रन्थ हैं। उन जैसे सकलशारों में पारंगत विद्वान जगत के इतिहास में बहुत ही कम मिलेंगे। अपने अपरिमित ज्ञानही के कारण वे कलिकाल सर्वज्ञ कहलाये । सुप्रख्यात् पाश्चात्य विद्वान पिटर्सन ने उन्हें ज्ञान का सागर ( Ocean of knowledge ) कहा है। कहा जाता है कि उन्होंने ३॥ करोड़ श्लोकों की रचना की। यद्यपि अभी तक आचार्य हेमचन्द्र का इतना साहित्य उपलब्ध नहीं है, पर जो कुछ भी उपलध है वह इतना विशाल है कि जिसे देखकर आचार्य श्री की अगाध विद्वत्ता का पता मिलता है। हेमचन्द्राचार्य की साहित्य सेवा श्री हेमचन्द्राचार्य की साहित्य सेवा का थोड़ा सा परिचय हम ऊपर दे चुके हैं। भाचार्य श्री के व्याकरण के सम्बन्ध में यहाँ इतना ही कहना पर्याप्त है कि उक्त व्याकरण अति प्रामाणिक सुबोध, सरल और विश्वसनीय है। पूर्व समय के आपिशली, यास्क, शाकटायन, गार्ग्य, वेद मित्रशाकल, चन्द्रगोयी, शेषभट्टारक, पतंजली, पाणिनि, देवनंदी,. जयादित्य, विश्रांत, विद्याधर, विश्रान्तन्यासकार जैन शाकटायन, दुर्गासिंह, श्रुतपाल, क्षीर स्वामी, भोज, नारायण कंठी, मिल, शिक्षाकार, उत्पल, न्यासकार, पारायण कार, आदि अनेक प्रसिद्ध पूर्वगामी व्याकरणों का उल्लेख आपके व्याकरण में मिलता है। भापने अपने व्याकरण में इन सब वैयाकरणों के मतों का बड़े ही विवेक के साथ उपयोग किया है और कहीं २ उनकी समालोचना भी की है । इससे आपका व्याकरण भारतीय साहित्य के इतिहास में एक अलौलिक वस्तु हो गया है।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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