SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 266
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ओसवाल जाति का इतिहास इस मन्दिर में कुछ शिलालेमा भी हैं जिनमें से पहला शिलालेख वि.सं०१४३३, दूसरा १५७२ और तीसरा १७५४ का है।* ... श्री कापरड़ा पार्श्वनाथ का मन्दिर-जोधपुर राज्य में कापरड़ा पाश्र्वनाथ का मन्दिर भी एक दर्शनीय वस्तु है। यह बड़ा ही सुन्दर और भव्य मन्दिर है। शिल्पकला का बढ़िया नमूना है। इसे जेतारण के ओसवाल जाति के भण्डारी भमराजी के पुत्र मानाजी ने बनवाया था। उक्त मन्दिर में सम्वत् १६७८ के वैशाख सुदी पूर्णिमा का एक लेख है जिससे मालूम होता है कि भण्डारी अमराजी और उनके पौत्र ताराचन्दजी ने पाश्र्वनाथ के उक्त चैत्य की जैनाचार्य श्री जिनचन्द्रसूरिजी से प्रतिष्ठा करवाई। कुलपाक तीर्थ-यह तीर्थस्थान दक्षिण हैदराबाद से ४५ मील की दूरी पर बसा हुआ है। यहाँ एक बहुत बड़ा भव्य मन्दिर तथा माणिक्य स्वामी की प्रतिमा विराजमान है। यह मन्दिर तथा प्रतिमा अति ही प्राचीन बतलाई जाती है । यह स्थान बड़ा भव्य तथा रमणीय बना हुआ है। यहाँ पर कई शिलालेख भी प्राप्त हुए हैं जो आन भी एक कमरे में सुरक्षित रक्खे हुए हैं। कई शिलालेखों के बीच में कहीं २ कुछ अक्षर नष्ट हो गये हैं जिनके कारण बहुत सा अर्थ समझ में नहीं आता। यहाँ पर एक शिलालेख संवत् १३३३ के भादो वदी ४ का भी मिला है जो मारवाड़ी लिपि में लिखा हुआ है। ऐसा मालूम होता है कि किसी पात्री ने उसे खुदवा कर लगा दिया होगा। कुछ भी हो इस शिलालेख से तो यह अवश्य ही सिद्ध होता है कि यह मंदिर सं० १९३३ के पहिले का बना हुआ है। इसके पश्चात् के तो कई शिलालेखों में उक्त मन्दिर तथा प्रतिमा का उल्लेख भाया है। यहाँ की प्रतिमा बड़ी प्रतिभावान, भव्य तथा तेजस्वी प्रतीत होती है। श्री मान्दक पार्श्वनाथ तीर्थ-यह तीर्थस्थान वर्धा से ६० मील की दूरी पर जी० आई. पी. रेलवे के भान्दक नामक स्टेशन के पास है। लगभग बीस वर्ष पूर्व चतुर्भुज भाई, हीरालालजी दूगर, तथा सिद्धकरणजी गोलेछा ने पार्श्वनाथ की विशाल सात फूट की पमासनमय मूर्ति खोज निकाली एवं परिश्रम पूर्वक हजारों रुपये एकत्रित कर एक बड़ा विशाल मंदिर बनवाया, तथा इसकी प्रतिष्ठा पंडित रामविजय जी और जयमुनिजी के द्वारा हुई। उपरोक्त सज्जनों के बाद खेठ छोटमलजी कोठारी ने इस तीर्थ के फण्ड को खूब बढ़ाया। इस स्थान पर एक भद्रावती जैन गुरुकुल भी स्थापित है जिसकी देख रेख व मन्दिर का निरीक्षण भाजकल नथमलजी कोठारी करते हैं। इस तीर्थ में एक देरासर नागपुर के प्रसिद्ध जोहरी पानमलजी एवं महेन्द्रकुमारसिंहजी चोरड़िया ने बनवाया है। .... सुजानगढ़ का जैन मन्दिर-सुजानगढ़ का यह प्रसिद्ध जैन मन्दिर यहाँ के सुविख्यात सिंधी परिवार द्वारा बनाया गया है। यह मन्दिर बड़ा ही भव्य, रमणीय तथा दर्शनीय है। यहाँ की कोराई व कारीगरी को देखकर दर्शक मुग्ध हो जाते हैं। इस मंदिर के बनवाने में लाखों रुपये व्यय हुए होंगे। में उदयपुर के सुप्रख्यात वापना वंशीय सेठ बहादुरमलजी एवं सेठ जोरावरमलजी ने मन्दिर के प्रथम द्वार पर नकारखाना बनवाकर वर्तमान ध्वजा दण्ड चढ़ाया। इस लेख के पूर्वाश के लिखने में रा० ब० महामहोपाध्याय पं. गौरीशंकरजी भोझा कृत उदयपुर राज्य का इतिहास नामक ग्रंथ से बहुतसी सहायता मिली है।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy