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________________ कलकत्ते का जैन मन्दिर यह जैन मंदिर नगर के उत्तर में मानिकतला स्ट्रीट में है। यहाँ पर सक्युलर रोड से आसानी से पहुंचा जा सकता है। वास्तव में यहाँ तीन मन्दिर हैं, जिनमें मुख्य मन्दिर जैनियों के दशवें तीर्थकर शीतलनाथजी का है। ये मन्दिर राय बद्रीदास बहादुर जौहरी द्वारा सन् . १८६७ ई० में बनवाये गये थे। टेम्पल स्ट्रीट के द्वार से घुसते ही बड़ा सुन्दर दृश्य सामने आता है । स्वर्ग सदृश भूमि पर मनोहर मन्दिर बड़ा ही भव्य मालूम पड़ता है। भारत की जैन शिल्पकला का यह ज्वलंत उदाहरण है। मन्दिर के सामने संगमरमर की सीढ़ियाँ बनी हैं और इसके तीन ओर चित्ताकर्षक बरामदे बने हुए हैं। दीवारों पर रंग बिरंगे छोटे २ पत्थर के टुकड़े जड़े हुए हैं और दालान तथा छत इस खूबी से बनाये गये हैं कि उन पर से आँख हटाने को जी नहीं चाहता। शीशे और पत्थर का काम भी उतना ही नयनाभिराम है। छत के मध्य में एक बड़ा भारी फानूस टॅगा है। मंदिर के चारों तरफ सुन्दर बगीचा बना हुआ है। इसमें बदिया से बढ़िया फव्वारे, चबूतरे आदि बने हैं । बगीचे के उत्तर में शीशमहल है, जिसमें दीवाल, छत, फानूस, कुर्सियाँ इत्यादि सभी वस्तुएँ शीशे ही की हैं। इसके भीतर का भोजनागार सबसे अधिक देखने योग्य है। ये मन्दिर और बगीचा अवश्य ही किसी चतुर शिल्पी के कार्य हैं। अजएटा के जैन मन्दिर भारत में ऐसा कौन इतहासज्ञ होगा कि जिसने अजण्टा की ऐतिहासिक गुफा का नाम न सुना हो। इस मन्दिर में अत्यन्त प्राचीन बौद्ध मंदिर तथा तत्सम्बन्धी अनेक ऐतिहासिक चित्र हैं। सैकड़ों वर्ष हो जाने पर आज भी उनकी सुन्दरता और रंग बराबर ज्यों के त्यों बने हुए हैं । इस गुफा में जैन मन्दिर भी थे, जो अभी भग्नावस्था में हैं। उनमें से एक का फोटो ईसवी सन् १८६६ में प्रकाशित “ Architecture ab Ahmadabad '' नामक ग्रन्थ में प्रकाशित हुआ है। यद्यपि इस मंदिर का शिखर नष्ट हो गया है पर जान पड़ता है कि वह बहुत बड़ा और मिश्र देश के सुप्रख्यात् पिरामिड के आकार का था। इस मन्दिर का मण्डप अति विशाल था। इसके खम्भों पर बड़ी ही सुन्दर कारीगरी का काम हो रहा है। यह मंदिर भाठवीं सदी का प्रतीत होता है।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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