SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 250
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीसबाल माति का इतिहास सुदी ७ सोमवार का है । उसमें ओसवाल समाज के दूगड़ गौत्र के शाह उदयसिंह, मूला शाह, शहानगराज आदि नामों के उल्लेख हैं। दूसरा लेख संवत् १४९२ का है जिसमें ओसवाल समाज के कांकरिया गौत्र के शाह सोहड़ और उनकी भार्य्या हीरादेवी द्वारा श्री आदिनाथ बिम्व की प्रतिष्ठा करवाये जाने का उल्लेख है । तीसरा लेख संवत् १५०८ का है इस लेख में ओसवाल बंश के शाह खेता डूंगरसिंह द्वारा - श्री धर्मनाथ भगवान की बिम्ब प्रतिष्ठा करवाने का उल्लेख है। इस प्रकार यहां पर कई लेख हैं जिनमें ओसवाल सज्जनों के नामों का जगह २ पर उल्लेख किया गया 1 श्री सम्मेदशिखरजी जैनियों का यह अत्यंत प्रख्यात तीर्थ स्थान है। क्योंकि इस महान् तीर्थराज पर उनके बीस तीर्थकर निर्वाण पद को प्राप्त हुए हैं। इस पवित्र पहाड़ के बीस टोंक में से उन्नीस टोंक पर छत्रियों में चरण पादुका विराजमान है और श्री पार्श्वनाथ स्वामी भी टोंक पर मन्दिर है। और धर्मशाला बने हुए हैं। यहां से चार कोस पर ऋजुबालुका नदी बहती है भगवान् को केवलज्ञान हुआ था । यहाँ पर चरण पादुका 1 तलैटी के मधुवन में मंदिर जिसके समीप में श्री वीर इस नदी के तट पर की छतरी पर संवत् १९३० की वैसाख शुक्ल १० का एक लेख है जिससे ज्ञात होता है कि मुर्शिदाबाद निवासी प्रतापसिंहजी और उनकी भार्य्या महताव कुँवर तथा उनके पुत्र लक्ष्मीपतसिंह बहादुर और उनके छोटे भाई धनपतसिंह बहादुर ने उक्त छतरी का जीर्णोद्धार करवाया । इसी प्रकार यहां पर तथा टोंको पर बीसों लेख हैं जिनमें ओसबाल सज्जनों के पुनरुद्धार तथा प्रतिष्ठा आदि कायों के उल्लेख हैं । यहां पर ओसवाल समाज की तरफ से बड़ी २ धर्मशालाएँ बनी हुई हैं और तीर्थ स्थान का सारा प्रबन्ध ओसवालों के हाथ में है । १७६
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy