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________________ पाली का नवलखा मन्दिर मारवाड़ में पाली नाम का एक प्रसिद्ध और प्राचीन नगर है । वहाँ पर नवलखा मन्दिर नाम का बड़ा ही भव्य और १२ जिनालय वाला प्राचीन देवालय । इस मन्दिर की दो प्रतिमाओं पर दो लेख खुदे हुए हैं । पहिले लेख का भाव यह है - "संवत् १२०१ के ज्येष्ठ वदी ६ रविवार के दिन पल्लिका अर्थात पाली नगर के महावीर स्वामी के मन्दिर में महामान्य आनन्द के पुत्र महामान्य पृथ्वीपाल ने अपने आत्म-कल्याण के लिये दो तीर्थङ्करों की मूर्तियां बनवाई, उनमें से यह अनंतनाथ की प्रतिमा है" । दूसरी प्रतिमा पर भी इसी प्रकार का लेख खुदा हुआ है, पर उसके अंतिम वाक्य में "अनंत" बदले "बिमल" का उपयोग किया गया है। उससे ज्ञात होता है कि उक्त प्रतिमा भगवान विमलनाथ की है । इसी मन्दिर में रक्खी हुई एक प्रतिमा के सिंहासन पर निम्न लिखित आशय का लेख खुदा हुआ है। संवत् ११८८ की माघ सुदी ११ के दिन अजित नाम के एक गृहस्थ ने शांतिनाथ की मूर्ति बनायी और ब्राह्मी गच्छीय देवाचार्य ने उसकी प्रतिष्ठा की । उक्त मन्दिर में श्री आदिनाथ भगवान की मूर्ति के मीचे पद्मासन के ऊपर एक लेख खुदा हुआ है जिसका सार यह है " संवत् ११७८ की फाल्गुन सुदी ११ शनीवार को पाली के वीरनाथ के महान् मन्दिर में उद्धोदनाचार्य के शिष्य महेश्वराचार्य और उनके शिष्य देवाचार्य के साहार नामक श्रावक के दो पौत्र देवचन्द्र तथा हरिश्चन्द्र ने मिल कर देवचन्द्र की भार्थ्या वसुंधरी के पुण्यार्थ ऋषभदेव तीर्थङ्कर की प्रतिमा निर्माण करवाई। इसके अतिरिक्त इस मन्दिर के मुख्य गर्भागार की बेदिका पर विराजमान तीन प्रतिमाओं पर तीन लेख खुदे हुए हैं। ये लेख संवत् १६८६ की वेशाख सुदी ८ के हैं । पहिले और अंतिम लेख में जो कुछ लिखा गया है उसका सारांश यह है कि "जब महाराजाधिराज गजसिंहजी जोधपुर में राज्य करते थे और महाराज कुमार अमरसिंहजी युवराज पद भोग रहे थे, और जब उनका कृपा पात्र चौहान वंशीय जगन्नाथ पालीनगर की हुकूमत कर रहा था, उस समय उक्त नगर के निवासी श्रीमाली जाति के सा हूँ गर तथा भाखर नाम के दो भाइयों ने अपने द्रव्य से नोलखा नामक मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया और उसमें पार्श्वनाथ तथा सुपार्श्वनाथ की प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित की।" पाली नगर में " लोढ़ा रो बास" एक मोहल्ला है, उसमें शांतिनाथ के मन्दिर की मूल नायकजी की प्रतिमा पर एक लेख खुदा हुआ है। उक्त लेख से यह ज्ञात होता है कि उक्त मूर्तियों की प्रतिष्ठा कराने बाले हूँ गर और भाखर दोनों भाई थे। ये भोसवाल जाति के थे, और उनका वंश श्री श्रीमाल तथा गौत्र २१ ११
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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