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________________ धार्मिक क्षेत्र में ओसवाल जाति जालोर (मारवाड़) मारवाड़ के दक्षिण भाग में जालोर नाम का एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक नगर है। मारवाड़ की राजधानी जोधपुर से यह ८० माईल की दूरी पर सूदड़ी नामक नदी के किनारे बसा हुभा है। प्राचीन लेखों और ग्रन्थों में यह नगर जवालीपुर के नाम से प्रसिद्ध था। सुप्रसिद्ध श्वेताम्बर आचार्य श्री जिने. श्वरसूरि ने वि० संवत् १०८० में श्री हरिभद्राचार्य रचित अष्टक संग्रह नामक ग्रन्थ को विद्वत्तापूर्ण टीका यहीं पर की थी। और भी अनेक ग्रन्थों में इस नगर का नाम मिलता है। इस पर से यह स्पष्ट ज्ञात होता है, कि प्राचीन काल में यह नगर जैन संस्कृति से प्रकाशमान था। वहां के संवत् १२४२ के एक लेख से मालूम होता है कि उस देश के तत्कालीन अधिपति चहामान (चौहान) श्री समरसिंध देव की भोज्ञा से भण्डारी पांसू के पुत्र भण्डारी यशोवीर ने कुँवर विहार नामक मन्दिर का पुनरुद्धार किया। . इसके अतिरिक्त जोधपुर नरेश महाराजा गजसिंहजी के मन्त्री जयमलजी ने यहां पर कुछ जैन मन्दिर और तपेगच्छ के उपाश्रम बनवाये। जालौर के किले पर जो जैन मन्दिर विद्यमान है उसका जीर्णोबार भी आप ने करवाया। उस मन्दिर में प्रतिमा पधरा कर भाप ही ने उसकी प्रतिष्ठा करवाई । राजा कुँवरपाल के समय का बना हुआ जैन मन्दिर गिर गया था। उसकी नींव मात्र शेष रह गई थी। उसी स्थान पर जयमलजी ने मन्दिर बनवाकर संवत् १६८१ के चैत्र बदी ५ को प्रतिष्ठा करवाई। इनके पश्चात् इनके पुत्र नैनसीजी ने इसी मन्दिर के सामने मण्डप बनवाकर उसमें अपने पूज्य पिता श्री जयमलजी की मूर्ति संगमरमर के बने हुए श्वेत रंग के हाथी के हौदे पर स्थापित की। यह मूर्ति मूलनायकजी की प्रतिमा के सन्मुख हाथ जोड़े हुए विराजमान है। इस मन्दिर का द्वार उत्तर की ओर मुखवाला है। यह किले की ऊपर की अंतिम पोल के नैऋत्य कोण में थोड़ी ही दूर पर अवस्थित है । वह मन्दिर महावीर स्वामी के नाम से मशहूर है । इस मन्दिर की मूलनायक की प्रतिमा के नीचे एक लेख खुदा हुआ है जिसमें शाह जैसा की भार्या जेवंतदे के पुत्र शाह जयमलजी और तत्पुत्र मुणोत मैनसी जी और सुन्दरदासजी का उल्लेख है। महावीरजी के मन्दिर की तरह यहां पर एक चौमुखाजी का मन्दिर है। यह किले के ऊपर की अंतिम पोल के पास किलेदार की बैठक के स्थान से थोड़ी दूर पर नक्कारखाने के मार्ग पर बना हुआ है। मन्त्री जबमलजी ने इस मन्दिर में संवत् ११० के प्रथम चैत्र वदी ५ को श्री आदिनाथ स्वामीजी की प्रतिमा को पचराई, जिसका लेख इस प्रतिमाजी पर खुदा हुआ है। इसी किले में एक तीसरा जैन १५९
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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