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________________ श्रोसवाल आति का इतिहास उसकी फौजें पहुंची थीं और मूर्तियों का तोड़ना प्रारम्भ कर दिया था। कुछ परिकर और तोरण टूटे हुए रूप में अभी भी वहाँ पाये जाते हैं। जिनको लोगों की किम्बदन्ति औरंगज़ेब के द्वारा तोड़े हुए बतलाती है। आगे चलकर यह किम्बदन्ति यह भी कहती है कि जिस रात्रि में उसने इनको तोड़ने का काम शुरू किया उसी रात को बादशाह और उसकी बेगम दोनों बीमार पड़े और बेगम को स्वम में ऋषभनाथ तीर्थङ्कर की मूर्ति को देखा, यह देखकर ओरंगज़ेब ने मूर्तियों का तोड़ना बंद कर दिया। इसी मंदिर में ३ छोटी ईदगाहें भी बनी हुई हैं। ऐसा कहते हैं कि जब उसने तोड़ फोड़ का काम आरम्भ किया तो साथ ही । ईदगाहें भी बनवा डाली। यह किम्बदन्ति सच है या झूठ, औरंगजेब इस मन्दिर में आया या नहीं यह बात निश्चय पूर्वक नहीं कही जा सकती पर यह बात तो निश्चित है कि मुसलमानों ने इस मंदिर को सुकसान पहुंचाया और तोरण गुम्मच वगैरा की तोड़ फोड़ की, तथा । ईदगाहें बनाकर बाद में उपद्रव रोक दिया। . ऐसा कहा जाता है कि इस देवालय के निर्माण कर्ता धन्नासा और रसनासा का विचार इसको ७ मंजिला बन वानेका था, जिसमें से ४ मंजिल तो बनाये जा चुके थे और तीन मंजिलों के लिये काम अधूरा रह गया जो अभी तक नहीं बन सका। इसके लिये रवाशाह के वंशज अभी तक उस्तरे से हजामत नहीं बनवाते हैं।* सादड़ी ग्राम से पूर्व ३ मील की दूरी पर निर्जन स्थान में यह मन्दिर अवस्थित है। यह मंदिर शास्त्रों में वर्णित नलिनी गुल्म विमान के आकार का बनाया गया है। इसमें १४४४ खम्बे और ८४ तलघर हैं। संवत् १४९६ में श्री सोमचन्द्रसूरिजी ने इस मन्दिर की प्रतिष्ठा कराई। अभी कुछ समय पूर्व सेठ आनन्दजी कल्याणजी की पेढ़ी ने उक्त राणकपुर के मन्दिर की लागत आंकने के लिये एक होशियार इंजिनियर को बुलाया था उस इंजिनियर ने इस विशाल मन्दिर की लागत १५ करोड रुपया आंकी है। इससे पाठकों को ज्ञात हो जायगा कि गोडवाड प्रान्त में जैन समाज की यह एक मूल्यवान सम्पत्ति व कृति है। इस मन्दिर के आसपास नेमिनाथजी व पार्श्वनाथजी के दो मन्दिर हैं। इस मन्दिर की व्यवस्था पहिले सेठ हेमामाई हठीसिंह रखते थे जब उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई तब वह पीड़ा सादड़ी के जैन संघ ने उठाया और इधर संवत् १९५३ से सेठ आनंदजी कल्याणजी की पेथी इसका प्रबन्ध करती है। इस पेदी का भाफिस सादड़ी में है, यात्रियों के लिये सब प्रकार की व्यवस्था करादेने में भ फिस के व्यक्ति पड़े प्रेम का व्यवहार करते हैं। . * इस समय प्राग्वाट कुल श्रेष्ठ रलाशाह के वंशजों के ५२ घर घाणेराव में निवास करते है। १५६
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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