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________________ चार्मिक क्षेत्र में ओसवाल जाति हुआ है। इसके अन्दर महावीर देव की एक भव्य मूर्ति है। जिसके उपर ईस्वी सन् १९१८ का एक लेख पाया जाता है, पर जिस बैठक के ऊपर उस प्रतिमा को बैठाया गया है वह बैठक पुरानी है और उस पर ईस्वी सन् १०६१ का लेख पाया जाता है। इस देवालय में मूल नायक के स्थान पर महावीर देव की जो मूर्ति प्रतिष्ठित है उसकी पलथी पर सम्वत् १६७५ विक्रमीय का एक लेख है जिससे पता चलता है कि उपकेश वंश के (ओसवाल वंश के) साः नानिया नामक श्रावक ने अरासन नगर में श्री महावीर का बिम्ब स्थापित किया और उसकी प्रतिष्ठा श्री विजयदेवसूरि ने की। एक लेख इसी स्थान पर मूर्ति की बैठक के नीचे खोदा हुआ है, यह संवत् ११३८ के फाल्गुन सुदी ९ सोमवार का है। मगर खण्डित हो जाने की वजह से इसमें लिखने वाले के नाम का पता नहीं चलता। उपरोक्त दोनों मन्दिरों की तरह पार्श्वनाथ का मन्दिर शांतिनाथ का मन्दिर तथा सम्भवनाथ का मन्दिर और है। इन देवालयों की कारीगरी और बनावट थोड़े फेर-फारों के साथ प्रायः उपरोक्त मन्दिरों की'सी है इसलिए इनके विषय में विशेष विवेचन की आवश्यकता नहीं। इनके ऊपर जो लेख पाये जाते हैं उनमें धार का लेख का सम्बत् ११३८ और एक का ११४६ है। चार गोस्खयों पर भी लेख खुदे हुए हैं जो ईस्वी सन् १०८के हैं। राणकपुर राणकपुर या राणपुर गोड़वाड़ प्रान्त की पंचतीर्थियों में प्रमुखतीर्थ है। मारवाड़ देश में जितने प्राचीन जैन मन्दिर हैं उनमें रामपुर का मंदिर सब से कीमती और कारीगरी की दृष्टि से सब से अनुपम हैं। इसके सम्बन्ध में सर जेम्स फ>यन ने लिखा है कि "इसके सभी स्तम्भ एक दूसरे से भिन्न हैं और बहुत अच्छी तरह से संगठित किये हुए हैं।" इस प्रकार १४४४ विशाल प्रस्तर स्तम्भों पर यह मंदिर भवस्थित हैं। इनके ऊपर भिन्न २ ऊँचाई के अनेकों गुम्मच लगे हुए हैं जिनसे इसकी बनावट का मन के उपर बड़ा प्रभावशाली असर होता है, वास्तव में मन के ऊपर इतना अच्छा असर करनेवाला स्तम्भों का कोई दूसरा संगठन सारे भारत के किसी भी देवालय में नहीं है। यह मंदिर ४८००० वर्ग फीट जमीन पर पनाया हुआ है इस मंदिर के शिलालेखों से ज्ञात होता है कि इसे संवत् १४३४ में नादिया ग्राम निवासी भनासा और रतनासा नामक पोरवाद जाति के दो सेतों ने बनवाया था। ऐसा कहा जाता है कि जब ओरंगजेब ने राजपूताने पर चढ़ाई की थी तब इस देवालय पर भी
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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