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________________ धार्मिक क्षेत्र में ओसवाल जाति श्री महावीरस्वामी का मंदिर इस मंदिर में लगे हुए शिलालेख से ज्ञात होता है कि ओसवंश के बरड़िया गौत्रीय शाह दीपा इस भव्य मंदिर की प्रतिष्ठा कराई थी। संवत् १४५३ में यह मंदिर बना था । जिनसुखसूरिजी लिखते हैं किइस मंदिर की मूर्तियों की संख्या २३२ है । उपरोक्त सब मंदिर किले के अंदर है । जिनमें से कुछ का उल्लेख हम नीचे करते हैं । श्री सुपार्श्वनाथजी का मंदिर इसके अतिरिक्त शहर में भी कुछ मंदिर और देरासर हैं। के ऊपर हमने जिन मंदिरों का उल्लेख किया है, वे सब श्वेताम्बर समाज के खरतरगच्छ सम्प्रदाय हैं। पर इस मंदिर की प्रतिष्ठा सपूगच्छीय श्रावकों की ओर से संवत् १८६९ में हुई। इसमें एक प्रशस्ति लगी हुई है। उसने ज्ञात होता है कि इसकी प्रतिष्ठा करानेवाले तपाक के प्रसिद्ध आचार्य हीरविजयसूरि की शाखा के मुनि नगविजयजी थे तथा उन्होंने ही उक्त प्रशस्ति भी किली थी। इस प्रशस्ति की रचना गद्य पद्य युक्त पाण्डित्य पूर्ण क्लिष्ट संस्कृत भाषा में है । श्री विमलनाथजी का मंदिर इस मंदिर के मूलनायकजी की प्रतिमा के लेख से ज्ञात होता है कि संवत् १६६६ में उपगच्छा चा विजय सेन सूरिजी के हाथ से इसकी प्रतिष्ठा हुई थी । सेठ थीहरूशाहजी का देरासर जो ख्याति मेवाड़ में भामाशाहजी की है, वहीं ख्याति जैसलमेर में र्थहरूशाह जी की है । आप भणसाली गौत्र के थे । आपका विशेष परिचय गत पृष्ठों में दिया जा चुका है। लोद्रवा के वर्तमान मंदिर का आप ही ने जीर्णोद्धार करवाया था । उक्त देरासर आपकी हवेली के पास है । इसके अतिरिक्त सेठ के शरीमलजी, सेठ चाँदमलजी, सेठ अक्षयसिंहजी, सेठ रामसिंहजी तथा सेठ धनराजजी के देरासर है। पर वे विशेष प्राचीन नहीं हैं । १४९
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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