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________________ राजनैतिक और सैनिक महत्व -वंतराव होलकर ने उदयपुर पर चढ़ाई की तब गंगारामजी भी उनके साथ थे । वहीं आपका परलोक वास हुआ । कोठारी गंगारामजी की इन कारगुजारियों का महाराजा होलकर ने बड़ा आदर दिया । आपको पालकी, छत्र, चँवर छड़ी आदि के सम्मान प्राप्त हुए थे । राजपूताने में भी आपकी बड़ी इज्जत थी । उदयपुर दरबार ने इन्हें अपने उमराओं में बैठक देकर इनका सम्मान किया था । तत्कालीन इन्दौर नरेश ने आपको परगना रामपुरे में जन्नौर और दुधलाय नामक दो गाँव इस्त• 'मुरारी जागीर में दिये थे । इनके लिये उन्हें सरकार को ९०१) टाँका के देना पड़ते थे । कोटारी शिवचन्दजी कोठारी शिवचंदजी कोठारी गंगारामजी के बंधु एवं भवानीरामजी के पौत्र थे । आप बड़े वीर, सिपहसालार और सफल शासक थे। रामपुरा, भानपुरा, गरोठ आदि परगनों के आप शासक (Governor) बनाये गये थे। जिस समय की यह बात है उस समय चारों ओर बड़ी अशांति छाई हुई थी; अराजकता और लूट मार का दौर दौर था। आस-पास के लुटेरे मीनों और सोंधियों के उत्पात से उन परगनों में त्राहि मची हुई थी । कोठारी शिवचन्दजी ने इन लुटेरों पर चढ़ाइयाँ कर इन्हें समुचित दण्ड दिया और रामपुरा भानपुरा परगनों में शांति का साम्राज्य कायम किया । इनकी वीरता की कहानियाँ आज भी रामपुर भानपुर जिले के लोग बड़े उत्साह के साथ कहते हैं । महामति टॉड साहब ने भी अपने प्रवास वर्णन में इन कोठारी साहब के प्रभाव का वर्णन किया है और भी कई अंग्रेजों ने इनकी बहादुरी और कारगुजारियों की बड़ी प्रशंसा की है। कहा जाता है कि उस समय वीरवर शिवचन्दजी का नाम लुटेरे, चोर और बदमाशों को कम्पा देने का काम करता था उस भयंकर अशांति के युग में इन्होंने जैसा अमन और चैन पैदा कर दिया था उससे उनकी ख्याति दूर २ तक फैल गई थी । सन् १८५७ में जब अंग्रेज सरकार के खिलाफ हिन्दुस्थान में चारों ओर विद्रोह की आग भड़की और जब पिण्डारियों के दल के दल रामपुर भानपुर जिलों की ओर बढ़ रहे थे। तब कोठारी शिवचंदजी मे बड़ी हिकमत अमली से इन लोगों को दूसरी ओर निकाल कर अपने जिलों की रक्षा कर ली थी। इस प्रकार और भी कई मौकों पर इन्होंने बड़े २ काम किये और उन जिलों में अपना नाम चिरस्मरणीय कर लिया । जैसा कि हम पहले कह चुके हैं कोठारी शिवचन्दजी में राजनीतिज्ञता और वीरता का बड़ा ही मधुर सम्मेलन हुआ था । एक ओर जहाँ हम आप को हाथ में तलवार लेकर युद्ध करते हुए देखते हैं, 110
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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