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________________ श्रोसवाल जाति का इतिहास आप मिलनसार युवक हैं। इस परिवार की इन्दौर एवं उज्जैन में दुकाने हैं। तथा इन्दौर, उज्जैन, सांवेर और बीकानेर में स्थाई जायदाद है। कुँवर टीकमसिंहजी के पुत्र भँवर दुलीचन्दजी हैं। श्री राखेचा मानमलजी मंगलचन्दजी, बीकानेर इस परिवार के पूर्वज लच्छीरामजी राखेचा बीकानेर में अपने समय में बड़े प्रतापी पुरुष हुए । आप संवत् १८५२-५३ में बीकानेर के दीवान रहे। आपने अपनी अन्तम वय में सन्यास वृत्ति धारण की एव "अलख मठ" स्थापित कर "अलख सागर" नामक प्रसिद्ध विशाल कप बनवाया। जो इस समय बीकानेर का बहुत बड़ा कूप माना जाता है। इनके पुत्र मानमलजी एवं गेंदमलजी माजी साहिबा पुगलियाणीजी के कामदार रहे। मानमलजी के पुत्र राखेचा मंगलचन्दजी बड़े प्रभावशाली व्यक्ति थे। आप श्री महाराजा गंगासिंहजी के वाल्यकाल में रिजेंसी कोंसिल के मेम्बर थे। इनके दत्तक पुत्र भेरूदानजी कारखाने का कार्य करते रहे। इस समय भेरूदानजी के पुत्र गंभीरचन्दजी एवं शेषकरणजी विद्यमान हैं। सेठ पूनमचन्दजी नेमीचन्दजी कोठारी (शाह) बीकानेर यह परिवार सेठ सूरजमलजी कोठारी के पुत्रों का है। लगभग १५० साल पहिले सेठ "बोलचन्द गुलाबचन्द" के नाम से इस परिवार का व्यापार बड़ी उन्नति पर था। एवं इनकी दुकानें जयपुर, पूना आदि स्थानों पर थीं। सेठ बालचन्दजी के पुत्र भीखनचन्दजी एवं पौत्र हरकचन्दजी हुए । कोठारी हरकचन्दजी के पुत्र नेमीचन्दजी का जन्म सम्वत् १९०२ में हुआ। आपने जादातर बीकानेर में ही ब्याज और जवाहरात का व्यापार किया । सम्वत् १९५२ में आप स्वर्गवासी हुए । आपके प्रेमसुखदास जी, पूनमचन्दजी तथा आनन्दमलजी नामक ३ पुत्र हुए । आप तीनों का जन्म क्रमशः सम्वत् १९३० सम्बत् १९३८ एवं सम्वत् १९४३ में हुभा। सेठ प्रेमसुखदासजी व्यापार के लिये सम्वत् १९४४ में रंगून गये, तथा "प्रेमसुखदास पूनमचन्द" के नाम से फर्म स्थापित की । सम्बत् १९५३ में आप स्वर्गवासी हो गये । आपके बाद आपके छोटे बंधु सेठ पूनमचन्दजी तथा आनन्दमलजी ने इस दुकान के व्यापार एवं सम्मान में अच्छी वृद्धि की । सेठ पूनमचन्दजी कोठारी रंगून चेम्बर आफ कामर्स के पंच थे। एवं वहाँ के व्यापारिक समाज में गण्यमान्य सज्जन माने जाते थे। इधर सम्वत् १९८२ से व्यापार का बोझ अपने छोटे बंधु पर छोड़ कर आप बीकानेर में ही निवास करते हैं। इस समय आप बीकानेर के आनरेरी मजिस्ट्रेट एवं म्युनिसिपल कमिश्नर हैं । यहाँ के ओसवाल समाज में आप प्रतिष्टित एवं समझदार पुरुष हैं। स्थानीय जैन पाठशाला में आपने ७१००) की सहायता दी है । इस समय आपके यहाँ “प्रेमसुखदास पूनमचन्द" के नाम से रंगून में बैकिंग तथा जवाहरात का व्यापार होता है। आपका परिवार मन्दिर मार्गीय आम्नाय का माननेवाला है। सेठ आनन्दमलजी के पुत्र लालचन्दजी एवं हीराचन्दजी हैं। कोचर परिवार बीकानेर सम्वत् १६७२ में महाराजा सूरसिंहजी के साथ कोचरजी के पुत्र उरझाजी अपने ४ पुत्र रामसिंहजी, भाखरसिंहजी, रतनसिंहजी तथा भीसिहजी को साथ लेकर बीकानेर आये। तथा उरझाजी के शेष ४ पुत्र फलोदी में ही निवास करते रहे। बीकानेर आने पर महाराजा ने इन भाइयों को अपनी रियासत में ऊँचे २ ओहदों पर मुकर्रर किया । इन बंधुओं ने अपनी कारगुजारी से रियासत में अच्छा ६००
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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