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________________ स्यामसुखा सेठ घमड़सी जुहारमल स्याम सुखा, बीकानेर हम ऊपर लिख भाये हैं कि चंदेरी के खतरसिंह के पौत्र भैसाशाहजी के पुत्रों से अलगअलग आठ गौत्रे उत्पन्न हुई। इनमें श्यामसीजी से श्यामसुखा हुए। इनकी नवीं पीदी में मेहता रतनजी हुए। आप बीकानेर दरबार के बुलाने से संवत् १५.५ में पाटन से बीकानेर में आकर मावाद हुए। इनकी दसवीं पीढ़ी में श्यामसुखा साहबचन्दजी हुए आपके संतोषचदजी, सुल्तानचन्दजी, सुमाकचन्दजी एवं घमढ़सीजी नामक ४ पुत्र हुए। सेठ घमड़सीजी श्यामसुखा -जिस समय मरहठा सेना के अध्यक्ष महाराजा होल्कर स्थान पर चदाइयाँ करके अपने राज्य स्थापन की व्यवस्था में व्यस्त थे, उस समय बीकानेर से सेठ धमइसीजी इन्दौर गये, एवं महाराजा होल्कर की फौजों को रसद सप्लाय करने का कार्य करने लगे। कहना न होगा कि ज्यों ज्यों होल्करों का सितारा उन्नति पर चढ़ता गया । त्यों त्यों सेठ धमढ़सीजी का व्यापार भी उन्नति पाता गया। मापने होल्कर एवं सिधियाजीते हुए प्रदेशों में डाक की सुव्यवस्था की। होल्करी सेना को भाप ही के द्वारा वेतन दिया जाता था। तत्कालीन होल्कर नरेश ने आपके सम्मान स्वरूप इन्दौर में आधे एवं सांवेर में पौने महसूल की माफी के हुक्म चल्यो । एवं घोड़ा, छत्री, चपरास व छड़ी, आदि पाकर आपको सम्मानित किया। इसी प्रकार गवालियर स्टेट की भोर से भी भापको कई सम्मान प्रास हुए। समय पटवा खानदान के प्रतापी पुरुष सेठ जोरावरमलजी बापना का आप से सहयोग हुआ, एवं इन दोनों शक्तियों ने “घमड़सी जोरावस्मल" के नाम से अनेकों स्थानों में दुकानें स्थापित कर बहुत जोरों से अफीम व बैंकिंग का व्यापार बढ़ाया। तमाम मालवा प्रान्त की अफीम आपकी भादत्त में आती थी। जब सेठ जोरावरमलजी का व्यापार पाँच भागों में विभक्त हो गया, उस समय सेठ घमसीजी अपने पुत्र जुहारमलजी के साथ में “घमइसी जुहारमल" के नाम से अपना स्वतन्त्र कारबार करने लगे। सेठ जुहारमलजी संवत् १९१३ में स्वर्गवासी हुए। आपके पुत्र सुरजमलजी एवं समीरमलजी ने अफीम तथा सराफी व्यापार को बहुत उसत किया। इन्दौर के "पंचों में आप भी प्रभावशाली और प्रधान व्यक्ति थे। सेठ समीरमलजी श्यामसुखा बीकानेर के सम्माननीय पुरुष थे। बीकानेर दरबार ने आपको केफियत तथा चौकड़ी बख्शी थी। इसी तरह भापके पुत्र सहसकरणजीको सोने का कड़ा एवं केफियत तथा उनकी धर्म पत्नी को पैरों में सोना पहनने का अधिकार बस्दा था। आपने सिद्धाचलजी आदि में कई धार्मिक काम करवाये। सेठ सूरजमलजी के सोभागमलजी एवं पूनमचन्दजी नामक २ पुत्र हुष्ट। इनमें सेठ सोभाग.. मलजी के अल्पवय में गुजर जाने से उनके नाम पर सेठ पूनमचन्दजी दत्तक गये। आपका जन्म संवत १९२५ में हुआ। भाप बीकानेर के प्रतिष्ठित एवं वयोवृद्ध सज्जन हैं। बीकानेर से आपको इज्जत, केफियत, छड़ी, चपरास, चौकड़ी आदि का सम्मान प्राप्त हुआ है। देहली दरबार के समय बीकानेर दरबार सेठ चाँदमलजी ढड्डा एवं आपको अपने साथ ले गये थे। आपके पुत्र कुँवर दीपचन्दजी का जन्म संवत् १९४४ में हुआ। आप अपनी दुकानों का कारोबार समालते हैं। कुँवर दीपचन्दजी के पुत्र टीकमसिंहजी, पदमसिंहजी, रत्तीचन्दजी एवं तेजसिंहजी हैं। कुंवर टीकमसिंहजी का जन्म संवत १९५४ में हुमा । १२५A
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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