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________________ सिंघो-अवैन मजिस्ट्रेट एवं लोकप्रिय महानुभाव है । उदयपुर दरबार ने आपको "ताजीम" बख्शी है। आपके पुत्र कुवर गोविन्दसिंहजी इण्टर में पढ़ रहे हैं । इनसे छोटे कुवर मुकुन्दसिंहजी भी पढते हैं। आपका परिवार शाहपुरा तथा गोवर्द्धन में बहुत प्रतिष्ठा सम्पन्न माना जाता है । आपके यहाँ जमीदारी और बैंकिग का काम होता है। सुजानगढ़ का सिंधी परिवार इस परिवार के पूर्व पुरुष जोधपुर से राव बीकाजी के साथ इधर आये थे। उन्हीं की सन्ताने चुरू, छापर वगैरह स्थानों में वास करती रहीं। चुरू में राजरूपजी हुए । आपके ३ पुत्र हुए। इनमें प्रथम मोतीसिंहजी चुरू ही रहे । दूसरे कन्हीरामजी हरासर नाम के स्थान पर चले आये। तीसरे करनीदानजी निःसंतान स्वर्गवासी हो गये । कहा जाता है कि कन्हीरामजी तत्कालीन हरासर के ठाकुर हरोजी के कामदार रहे थे। किसी कारणवश अनबन हो जाने के कारण आप सम्वत् १८८९ के करीब सुजानगढ़ भाकर बस मये । जब आप हरासर में थे उस समय वहाँ आपने एक तालाब और कुवाबनवाया जो आज भी विद्यमान है। आपके पाँच पुत्र हिम्मतसिंहजी, शेरमलजी, गोविन्दरामजी, पूर्णचन्दजी और अनोपचन्दजी थे । इन सब भाइयों में पूर्णचन्दजी बड़े प्रतिभावान व्यक्ति हुए। आपने मुर्शिदाबाद आकर वहाँ की सस्काकीन फर्म सेठ केशोदास सिताबवन्द के यहाँ सर्विस की। पश्चात् आप अपनी होशियारी से उक्त फर्म के मुनीम हो गये । आपके द्वारा जाति के कई व्यक्तियों का बहुत लाभ हुआ । आपने अपने देश के कई व्यक्तियों को रोज़गार से लगवाया था। हिम्मतमलजी भी बड़े न्यायी और उदार सजन थे । सम्वत् १९०५ में आप लोग अलग . हो गये । सेठ हिम्मतमलजी के परिवार में चेतनदासजी हुए। आपके इस समय बींजराजजी और रावतमलजी नामक दो पुत्र हैं। शेरमलजी के कुशलचन्दजी, ज्ञानमलजी और लालचन्दजी नाम ३ पुत्र हुए । आप सब अलग अलग हो गये और आपके परिवार वाले इस समय स्वतंत्र व्यापार कर रहे हैं। सेठ कुशलचन्दर्ज का परिवार-सेठ कुशलचन्दजी के तीन पुत्र हए, जिनके नाम क्रमशः जेस. राजजी, गिरधारीलालजी और पनेचंदजी हैं। सेठ जेसराजजी शिक्षित और अंग्रेजी पढ़े लिखे सज्जन थे। आपने अपने भाइयों के शामलात में केरोसिन तेल का व्यापार किया। इसमें आपको अच्छी सफ़ कता मिली। इसके बाद आप लोग जूट बेजिंग का काम करने लगे। इसमें भी बहुत सफलता रही। भाप मन्दिर सम्प्रदाय के अनुयायी थे। आपने अपने जीवन में बहुत सम्पत्ति उपार्जित की। भापका स्वर्गवास हो गया। आपके पुत्र बछराजजी इस समय विद्यमान हैं। आप मिलनसार सज्जन हैं और कलकत्ता में १६१ हरिसन रोड में जूट का व्यापार करते हैं। आपके हंसराजजी, धनराजजी और मोहनलालजी नामक तीन पुत्र हैं। सेठ गिरधारीमलजी अपने चाचा सेठ लालचन्दजी के नाम पर दत्तक चले गये । आपके इन्द्रचन्द जी नामक एक पुत्र हुए । इस समय आपके भंवरलालजी भौर नथमलजी नामक दो पुत्र विद्यमान हैं। सेठ पनेचन्दजी भी अपने बड़े भ्राता की भाँति कुशल व्यापारी हैं। आपने अपनी शामलात वाली फर्म पर जूट के व्यापार में बड़ी उथल पथल पैदा कर लाखों रुपये अपने हाथों से कमाये थे। अपनी फर्म के नियमानुसार धर्मादे की रकम में से आप लोगों ने सुजानगढ़ में एक सुन्दर मन्दिर का निर्माण करवाया। आप इस समय बीकानेर स्टेट कौंसिल के मेम्बर हैं। आपको दरबार से कैफियत की इज्जत
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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