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________________ मोसवास जाति का इतिहास चुन्नीलालजी और सुखराजजी विद्यमान हैं। इनमें से धनराजजी ने अपनी फर्म अमरावती में 'धोकलचन्द धनराज" के नाम से खोली। सेठ चुनीलालजी ने संवत् १९५६ में अपना फर्म बंगलोर में “धोकलचन्द चुन्नीलाल के नाम से कालीप बाज़ार में खोली। तथा सेठ सुखराजजी ने संवत् १९७७ में अपनी दुकान मद्रास में खोली । आप तीनों भाई बड़े धार्मिक और व्यापार दक्ष पुरुष हैं। आप लोगों का जन्म क्रमशः संवत् १९३१ संवत् १९३५ तथा १९३८ में हुआ। सेठ धनराजजी के पुत्र बन्शीलालजी हैं । सेठ सुखराजजी के पुत्र अमोलकचन्दजी और अमोलकचन्दजी के पुत्र भंवरीलालजी हैं । भवरीलालजी को सेठ चन्नी. लालजी ने दत्तक लिया है। मरलेका सेठ धूलचन्द दीपचन्द मग्लेचा, चिंगनपेठ ( मद्रास ) इस परिवार के पूर्वज सेठ बोरीदासजी मरलेचा कण्टालिया रहते थे। सम्बत् १९२३ में वहाँ के जागीदार से इनकी अनबन हो गई, और जिससे इनका घर लुटवा दिया गया। इससे आप कण्टालिया से मेलावास (सोजत) चले आये। तथा ४ साल बाद वहाँ स्वर्गवासी हुए। आपके पुत्र धूलचन्दजी व्यवसाय के लिये जालना आये, यहाँ थोड़े समय रह कर आप मारवाड़ गये, तथा वहाँ सम्बत् १९७६ में स्वर्गवासी हुए । आपके पुत्र दीपचन्दजी का जन्म सम्वत् १९५६ में हुआ। दीपचन्दजी मरलेचा मारवाड़ से सम्वत् १९६६में अहमदनगर और उसके डेढ़ बरस बाद मद्रास आये । और वहाँ सर्विस की। सम्वत् १९७६ में आपने बगड़ी निवासी सेठ धनराजजी कातरेला की भागीदारी में चिंगनपेठ (मद्रास) में व्याज का धधा "धनराज दीपचन्द" के नाम से शुरू किया आपके पुत्र पारसमलजी तथा चम्पालालजो हैं। आप स्थानकवासी आम्नाय के सजन हैं। श्री धनराजजी कातरेला के पुत्र वंशीलालजी इस फर्म के व्यापार में भाग लेते हैं। आप दोनों युवक सजन व्यक्ति हैं। मड़ेचा मेसर्स सागरमल जवाहरमल मडेचा, इस फर्म के मालिकों का मूल निवासस्थान सोजत (जोधपुर-स्टेट) का है। आप श्वे० जैन समाज के तेरह पंथी आम्नाय को मानने वाले सजन हैं। इस फर्म के स्थापक सेठ जमनालालजी मारवाड़ से जालना आये और यहाँ पर आकर लोहे और किराने की दुकान खोली। आपका स्वर्गवास हुए करीब ३० वर्ष हो गये । आपके पश्चात् आपके छोटे भाई सेठ सागरमलजी ने इस फर्म के काम को सम्हाला । सागरमलजी सं. १९७० में स्वर्गवासी हुए। आपके चार पुत्र हुए। इनमें जवानमलजी, कुन्दनमलजी तथा समरथमलजी छोटी २ उमर में गुजर गये, तथा इस समय फर्म के मालिक आपके चतुर्थ पुत्र केशरीमलजी हैं। आपकी ओर से १००००) दस हजार की लागत से एक बङ्गाला सामायिक तथा प्रति क्रमण के लिए दिया गया। आपके पुत्र चम्पालालजी तथा मदनलालजी बालक हैं।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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