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________________ सालेचा और टाटिया सालेका सेठ गुलाबचंदजी सालेचा, पचपदरा इस परिवार के पूर्वज सालेचा बजरंगजी गोपड़ी गांव से संवत् ११५ में पचपदरा भाये । तथा यहाँ लेन देन का व्यापार शुरू किया। इनकी नीं पीढ़ी में सागरमलजी हुए। आप बंजारों के साथ नमक का व्यापार तथा कोटे में अफीम की खरीदी फरोख्ती का म्यापार करते थे। इन व्यापारों में सम्पत्ति उपार्जित कर आपने अपने आस पास की जाति बिरादरी में बहुत बड़ी प्रतिष्ठा पाई । जोधपुर दरवार को आपने ६० हजार रुपया कर्ज दिये थे, इसके बदले में पचपदारा हुकूमत की आय आपके पहां जमा होती थी। संवत् ११३५ में भाप स्वर्गवासी हुए । उस समय आपके पुत्र हजारीमलजी ४ साल के थे। सेठ हजारीमलजी सालेचा-आप पचपदराकेनामी व्यापारी और रईस तबियत के ठाठबाट वाले पुरुष थे। जोधपुर स्टेट व साल्ट डिपार्टमेंट के तमाम ऑफोसरों से आपका अच्छा परिवय था। आप जोधपुर स्टेट से २ लाख मन नमक खरीदने का कंट्राक्ट कई सालों तक लेते रहे। संवत् १९७३ में माप स्वर्गवासी हुए। आपके नाम पर सालेचा गुलाबचन्दजी भोपाल से दत्तक माये । . . सेठ गुलाबचन्दजी सालेचा-आपका जन्म संवत् १९४४ में हुआ। मापं बड़े अनुभवी तथा होशियार पुरुष हैं। आपने पचपदरा आने के पूर्व भोपाल, नागपूर आदि में स्कूल खुलवाये। पचपदरा में भी शिक्षा के काम में मदद देते रहे। आपके पास भारत की नमक को सीलों का . सालों का कम्पलीट अकाउण्ट है। संवत् १९२९ में आपने विलायती नमक की काम्पीटीशन में पचपदरा साल्ट का एक जहाज करांची से भर कर कलकत्ता रवाना किया, लेकिन बृटिश कम्पनियों ने सम्मिलित होकर वहाँ भाव बहुत गिरा दिया, इससे आपको उसमें सफलता न रही। नमक के व्यापार में आपका गहरा अनुभव है। भाप पचपदरा के प्रधानपंच तथा नाकोड़ा पाश्र्वनाथ के प्रबन्धक हैं। तथा जाति सुधारों में भाग लेते रहते हैं। आपके पुत्र लक्ष्मीचन्दजी तथा अमीचन्दजी जोधपुर में और चम्पालालजी पचपदरा में पढ़ते हैं। साँटिया सेठ भोमराज किशनलाल टाँटिया, खिचंद यह परिवार खिचंद का रहने वाला है। आप स्थानकवासी आम्नाय के मानने वाले सज्जन हैं। इस परिवार के पूर्वज सेठ हिम्मतमलजी टटिया, मालेगांव (खानदेश) गये, तथा वहाँ सर्विस करते रहे। फिर मापने चौपड़ा (खानदेश) में दुकान की। अपने जीवन के अन्तिम २५ सालों तक: मारवाद में आप धर्म ध्यान में लीन रहे। संवत् १९७९ में आप स्वर्गवासी हुए। आपके हस्तीमलजी, सोभागमलजी, गम्भीरमलजी तथा भोमराजजी नामक पुत्र हए। इनमें हस्तीमलजी टांटिया ने संवत् १९४८ में बम्बई में दुकान खोली। संवत् १९६९ में आप स्वर्गवासी हुए। भाप चारों भाइयों का कारवार संवत् १९७६ में अलग २ हुआ। सेठ हत्तीमलजी के किशनलालजी तथा गणूलालजी नामक को पुत्र हुए। इनमें र.णूलालजी मद्रास दत्तक गये। . . सेठ किशनलालजी ने अपने काका भोमराजजी के साथ बम्बई में भागीदारी में व्यापार भारंभ
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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