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________________ राजनैतिक और सैनिक महत्व किया । कोठारी केशरीसिंहजी पर इसके कारण बहुत से मेवाड़ के सरदार अप्रसन्न हो गये और वे उन्हें किसी भी प्रकार से निकालने का उपाय सोचने लगे । अन्त में तत्कालीन पोलिटिकल एजण्ट के पास कुछ सरदार पहुँचे और कोठारी केशरीसिंहजी पर २ लाख रुपये के गबन का अपराध लादकर मेवाड़ से उसे निकालने के लिये उकसाया। पोलिटिकल एजण्ट ने बिना जाँच किये ही इस कथन पर विश्वास कर लिया ओर उन्हें पदच्युत कर मेवाड़ राज्य से निकाल दिया । मगर महाराणा को कोठारी केसरीसिंहजी की स्वामिभक्ति पर पूरा विश्वास था, अतः उन्होंने इस झूठे दोष की पूरी जाँच की तथा निर्दोष सिद्ध होने पर कोठारी केसरीसिंहजी को बड़े आदर के साथ वापिस बुलाकर उदयपुर का दीवान बनाया । वि० संवत १९२५ में जब मेवाड़ में बड़ा भारी दुर्भिक्ष पड़ा तब आपने प्रजा हित के लिए राज्य के बड़े बड़े साहूकारों से मिलकर धान्य वगैरह की योग्य व्यवस्था करदी थी, कोठारी केसरीसिंहजी के इस कार्य से बहुत-सी प्रजा आप पर बड़ी प्रसन्न हो गई थी । तदनंतर वि० सं० १९२६ में आपने प्रधानगी के पद से इस्तीफा दे दिया । कोठारी केसरीसिंहजी बड़े स्पष्ट वक्ता, अनुभवी, स्वामिभक्त, प्रबन्ध-कुशल तथा वीर पुरुष थे । आप अपने इन गुणों के कारण ही अपने बहुत से शत्रुओं के बीच राज्यकार्य करते रहे तथा महाराणा और प्रजा के हितैषी बने रहे। महाराणाजी भी आपका विशेष सत्कार करते थे। साथ ही महत्व के कामों में आपकी सलाह ले लिया करते थे । यह हम ऊपर लिख चुके हैं कि आप बड़े प्रबन्ध-कुशल भी थे । एक समय महाराणा ने अपने निरीक्षण में अलग अलग विभागों की व्यवस्था की और किसानों से अन्न का हिस्सा लेना बन्दकर ठेके के तौर पर नगद रुपया लेना चाहा। महाराणा के इस सुधार कार्य को कार्यान्वित करने के लिए कोई योग्य आदमी न मिला । तब आपने अपने विश्वसनीय स्वामिभक्त कोठारी केसरीसिंहजी को इसके प्रबन्ध का कार्य्यं सौंपा जिसे आपने बड़ी योग्यता से संचालित किया । आपने उन सब विभागों का प्रबन्ध इतने सुचारु रूप से करके दिखला दिया कि आपका स्थापित किया हुआ प्रबन्ध आपकी मृत्यु के बहुत समय बाद तक बराबर चलता रहा । प्रसन्न हुए और आपका बहुत सत्कार किया । जब आप बीमार पड़े पधारे और आपको पूर्णरूप से सांत्वना दी । इस प्रकार आप वि० आपकी सेवाओं से महाराणाजी बढ़े तब महाराणाजी स्वयं आपके घर पर सं० १९२८ में स्वर्गवासी हुए । कोठारी छगनलालजी कोठारी केशरीसिंहजी के बड़े भाई कोठारी छगनलालजी भी बड़े ही प्रतिभाशाली तथा स्वामि भक्त महानुभाव थे । आपने संवत् १९०० में खजाने का काम किया और उसके बाद क्रमशः कोठार तथा ९३
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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