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________________ हिंगड़ इस कुटुम्ब की ओर से व्यावर में श्री गिरधारीलाल सांखला बोटिंग हाउस स्थापित है। जिसमें ६० विद्यार्थी निवास करते हैं । मोहर्रा में संवत् १९४६ से आपकी ओर से चिढ़ी चुगा का सदावृत जारीहै । सेठ अनराजजी के पुत्र केशरीमलजी, लालचन्दजी तथा स्तनलालजी हैं। इनमें केशरोमलजी फर्म के कारबार में भाग लेते हैं। यह फर्म सिकंदराबाद, बंगलोर तथा नीलगिरी के व्यापारिक समाज में बहुत प्रतिष्ठित मानीजाती है । इस खानदान के मेम्बर धार्मिक तथा परोपकार के कार्यों में अच्छी समत्ति व्यय करते रहते हैं। मारवाड़ में भी यह खानदान नामी माना जाता है । यह परिवार श्वेताम्बर जैन स्थानकवासी आम्नाय का मानने वाला है। । सेठ लछमणदास शिवलाल, परभणी इस खानदान के मालिकों का मूल निवास स्थान ताजौली (जोधपुर-स्टेट) का है। अप जैन तेरहपन्थी आम्नाय के मानने वाले सज्जन हैं। इस खानदान में सौ वर्ष पहले सेठ लक्ष्मणदासजी सांकला साढ़े गाँव (निजाम) आये। यहाँ भाकर आपने लेन देन और खेती बाड़ी का काम प्रारम्भ किया। तदनन्तर आपने अपनी एक और फर्म परभणी में स्थापित की, जिस पर बैकिङ्ग तथा कपास वगैरह का व्यापार प्रारम्भ किया। सेठ लक्ष्मणदासजी का संवत् १९२७ में स्वर्गवास हुआ । आपके पश्चात् भापके पुत्र सेठ शिवलालजी ने फर्म के काम को सम्हाला। भापके हाथ से इस फर्म के काम को बहुत तरक्की मिली। आप परभणी में प्रतिष्ठा सम्पन्न व्यक्ति माने जाते थे। आपका संवत् १९७६ में स्वर्गवास होगया। आपके नाम पर हेमराजजी साफला दत्तक पाये। सेठ हेमराजजी सांकला-आप बड़े योग्य और सज्जन पुरुष हैं। आपका जन्म संवत १९५६ में हुआ। भापकी ओर से मन्दिरों, तीर्थ यात्राओं तथा परोपकार में बहुत सा धन खर्च होता रहता है। आपके इस समय एक पुत्र है जिनका नाम कुंदनमलजी है। आपने परभणी के पाश्र्वनाथ जी के मन्दिर में बहुत रकम सहायतार्थ प्रदान की थी। आपकी फर्म परभणी के व्यापारिक समाज में प्रतिष्टित मानी जाती है। हिंगड़ सेठ केशरीमन कुन्दनमल हिंगड़, कलकत्ता इस परिवार के मालिकों का मूल निवास स्थान घागेराव (गोड़वाद ) का है। वहाँ से करोव ५० वर्ष पूर्व इस परिवार के पुरुष चन्द्रभानजी नाडोल (गोड़वाद) में आकर बसे। तभी से यह परिवार नाडोल में ही निवास करता है। आप श्वेताम्बर जैन मंदिर आन्नाय को मानने वाले सज्जन हैं। सेठ चन्द्रभानजी के छः पुत्र हुए जिनके नाम क्रमशः सेठ लखमीचंदजी, रिखबदासजी, गुलाबचंदजी, सिरदारमलजी पृथ्वीराजजी तथा राजमलजी हैं। የየ
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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