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________________ आसवाल जाति का इतिहास संवत् १९२८ में आप अजमेर से वापस मेड़ते चले गये। आपके बड़े पुत्र कल्याणमलजी का परिवार अजमेर में तथा सगनमलजी का परिवार मेडते में निवास करता है। मड़गतिया कल्याणमलजी-आपने अपने व्यापार और मकान, जायदाद आदि स्थाई सम्पत्ति को बहुत बढ़ाया । संवत् १९५७ में भाप स्वर्गवासी हए । आपके कस्तूरमलजी तथा जावंतराजजी नामक दो पुत्र हुए। इन बन्धुओं ने अपने पितामह सेठ फतेमलजी द्वारा बनाई गई दादाजीको छत्री में एक लाख रुपये व्यय करके १९७१ में प्रतिमा प्रतिष्ठित कराई । आप दोनों बन्धुओं का लाखों रुपयों का लेनदेन मारवाड़ के जागीरदारों में रहा करता था। आप अजमेर के प्रधान, प्रतिभाशाली साहकारों में माने जाते थे। संवत् १९७३ में दोनों भाइयों का व्यापार अलग अलग हुआ। भड़गतिया कस्तूरमलजी विद्यमान हैं। आपने लाखों रुपयों की सम्पत्ति मौज, शौक और आनन्द उल्लास में खरच की। आपके कोई सन्तान नहीं है। सेठ जावन्तराजजी का स्वर्गवास सम्बत् १९७६ में हुआ। आपके पुत्र उदयमलजी का जन्म सन् १९९१ में हुआ। आप प्रसन्नचित्त युवक हैं आपके यहाँ कल्याणमल जावंतराज के नाम से जोधपुर में तथा “बावमल उदयमल" के नाम से अजमेर में बैकिंग तथा जायदाद के किराये का काम होता है। भद्रगति या सुगनमलजी-आपका परिवार मेड़ते में निवास करता है। तथा वहाँ के ओसवाल माज म बहुत प्रातष्टित माना जाता है । आपका स्वर्गवास हो गया है। आपके तीन पुत्र हैं। जिनमें धनपतमलजी तथा आनन्दमलजी बिड़ला मिल गवालियर में सर्विस करते हैं तथा चन्दनमलजी मेड़ते में निवास करते हैं। सांखला सांखला गौत्र की उत्पत्ति-कहा जाता है कि सिद्धपुर पाटन के राजा सिद्धराज जयसिंह के विश्वास पात्र सेवक जगदेवजी के सूरजी, संखजी, सांवलजी, तथा सामदेवजी आदि ७ पुत्र थे। जयदेव जी, बड़े बहादुर पुरुष हुए। इनको श्री हेमसूरिजी ने संवत् ११७५ में जैन धर्म की दीक्षा दी । इस प्रकार संखजी जैन धर्म से दीक्षित हुए। इनकी सन्ताने सांखला कहलाई। सेठ सागरमल गिरधारीलाल सांखला, बंगलोर इस परिवार का मूल निवास्थान मोहर्ग (जोधपुरस्टेट ) है वहाँ से लगभग ६५ साल पहले सेठ गिरधारीलालजी सांखला व्यापार के लिये बंगलोर आये । आरम्भ में आपने 10 सालों तक मुनीमात की। पश्चात मिलटरी को नाणा. सप्लाय करने के लिये बैंकिंग व्यापार आरम्भ किया। तथा "सागरमल गिरधारीलाल" के नाम से फर्म स्थापित की। इसके १० साल पश्चात् आपने सिंकराबाद (दक्षिण) में तथा इसके भी साल पश्चात् आपने नीलगिरी में अपनी दुकानें खोली। इन सब स्थानों पर यह फर्म ब्रिटिश-छावनी के साथ बैंकिंग विजिनेस करती है। आपके पुत्र श्रीयुत अनराजजी सांखला बड़े बुद्धिमान उदार तथा व्यापार कुशल सज्जन हैं। १२२
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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