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________________ संखलेचा श्वेताम्बर जैन मन्दिर बनवा कर उसकी व्यवस्था वहाँ के जैन समान के जिम्मे की । आपके नाम पर रिखबचन्दजी अजितगढ़ ( अजमेर) से दत्तक भाये । इनका भी अल्प वय में स्वर्गवास हो गया, अतः -इनके नाम पर धामक से केसरीचंदजी गुगलिया दत्तक लिये गये । केशरी चन्दजी गुगलिया - आपका जन्म संवत् १९४७ में हुआ। आप उदार प्रकृति के राजसी ठाट बाट वाले व्यक्ति हैं । आपने अपने दादीजी के ओसर के समय ३१ हजार रुपया जैन बोर्डिंग हाउस फंड में दिया, इसी प्रकार हजारों रुपये की सहायता आपने शुभ कार्यों में की। ओसवाल बोडिंग में भी आपने सहायता प्रदान की थी। बाबू सुगनचन्दमी लुणावत द्वारा स्थापित महावीर मंडल नामक संस्था से आप दिलचस्पी रखते हैं । आप सन् १९२१ तक धामन गाँव में आनरेरी मजिस्ट्रेट रहे ! आपको पहलवान गवैया आदि रखने का बड़ा शौक है । आपके बड़े पुत्र खेमचन्दजी का ९ साल की वय में स्वर्गवास हो गया । इस समय आपके मुकुन्दीलालजी तथा कुंजीलालजी नामक २ पुत्र हैं जो बालक हैं। आपके यहाँ कृषि का विशेष कार्य्यं होता है । बरार प्रान्त के प्रतिष्ठित कुटुम्बों में इस परिवार की गणना है । संखलेचा काशीनाथजी वाले जोहरियों का खानदान, जयपुर इस परिवार के पूर्वज श्री जौहरीमलजी संखलेचा जयपुर में जवाहरात तथा जागीरदारों के साथ. लेने-देन का व्यापार करते थे । आपके नाम पर देहली से जौहरी दयाचन्दजी दत्तक आये । आपके समय से इस कुटुम्ब के व्यवसाय की उन्नति आरम्भ हुई । आपके काशीनाथजी, मूलचन्दजी, जमनालालजी तथा छोटीलालजी नामक ४ पुत्र हुए । काशीनाथजी जौहरी - आपने इस खान के जवाहरात के व्यापार को बहुत चमकाया। आप पर जयपुर महाराजा सवाई माधोसिंहजी बहुत प्रसन्न थे। जवाहरात में आपकी दृष्टि बड़ो सूक्ष्म थी । आप ए० जी० जी०, रेजिडेंट, तथा अन्य उच्च पदाधिकारियों से जवाहरात का व्यवसाय किया करते थे । इसके अलावा भारतीय राजा रईस तथा जागीरदारों में आप जवाहरात बिक्री किया करते थे। इस समय भाप का खानदान “काशीनाथजी वाले जौहरी" के नाम मशहूर है। आरके भैरोंलाखनी, बेजूलालजी तथा फूलचन्दजी नामक ३ पुत्र हुए। इन तीनों सज्जनों का स्वर्गवास हो गया है। इस समय बेजूलालजी के पुत्र नौरतनमलजी हैं। मूलचन्दजी जौहरी — आपके नाम पर आपके सब से छोटे भ्राता छोटीलालजी के तीसरे पुत्र चुनी कालजी दत्तक आये । चुनीलालजी का स्वर्गवास हो गया है। आपके पुत्र माणकचन्दजी स्था० नवयुवक मंडल के कोषाध्यक्ष हैं । जमनालालजी जौहरी - आप अपने बड़े भ्राता काशीनाथजी के पश्चात् उसी प्रकार फर्म का संचालित करते रहे । संवत् १९५३ में आप स्वर्गवासी हुए। आपके पुत्र महादेवलालजी तथा ६१५
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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