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________________ ओसवाल जाति का इतिहास - लाला दुनीचंदजी-आपका जन्म संवत् १९४० हुआ। आप आरम्भ में जवाहरात का काम करते थे। बाद आपने बसाती का व्यापार शुरू किया। इस व्यवसाय में आपको अच्छी सफलता मिली। धार्मिक कामों में आपकी अच्छी रुचि है। आपके प्यारेलालजी, प्रेमनाथजी, विलायतीरामजी, रतनचंदजी तथा रोशनलालजी नामक ५ पुत्र हैं। लाला प्यारेलालजी का जन्म संवत् १९६० में हुआ । भाप अपने व्यापार का उत्तमता से संचालन कर रहे हैं। आप हायजरी तथा मनीहारी का थोक व्यापार और इस माल का जापान आदि देशों से डायरेक्ट इम्पोर्ट करते हैं। आपके छोटे भ्राता प्रेमनाथजी तथा विलायतीरामजी व्यापार में भाग लेते हैं। अमृतसर में यह परिवार अच्छा प्रतिष्ठित माना जाता है । प्यारेलालजी के पुत्र तिलकराज तथा जत लाला मुंशीरामजी जैन तातड़, लाहोर इस खानदान के पुरुष स्थानकवासी सम्प्रदाय के मानने वाले हैं । इस परिवार का मूल निवास जयपुर है। वहां से यह परिवार लाहोर आया । इस परिवार में लाला नंदलालजी हुए। आपके पुत्र लाला शिब्बूमलजी और लाला पन्नालालजी हुए। लाला शिब्बूमलजी ने लगभग ५५ साल पूर्व काकरी मरचेंटस का व्यापार शुरू किया। आप दोनों बंधु:बड़े सजन व्यक्ति थे। लाला पन्नालाल जी संवत् १९०२ के स्वर्गवासी हुए। आपके लाला मुंशीरामजी, गंडामलजी तथा कपूरचन्दजी नामक ३ पुत्र विद्यमान हैं। इनमें गंडामलजी लाला शिब्बूमलजी के नाम पर तथा कपूरचन्दजी मोघा में अपने मामा के नाम पर दत्तक गये हैं। लाला मुंशीरामजी-आपका जन्म संवत् १९५२ में हुआ। आपने मेट्रिक तक शिक्षण पाया । सन् १९२१ से आपने देशकी सेवाओं में योग देना आरम्भ किया, तथा उस समय से आप लाहोर कांग्रेस के तमाम कार्मों में दिलेरी से हिस्सा लेते हैं। आप कई सालों तक लाहोर कांग्रेस के कोषाध्यक्ष व सूबा कांग्रेस के मेम्बर रहे हैं। सन् १९३० में सरकार ने बग़ावत फैलाने के आरोप पर दफा १२४ में आपको । साल की सख्त सजा दी, तथा बी. क्लास रिकमेंड की। सत्यागृह के समय आपने 1 हजार वालंटियर दिये थे। और २ सालों तक वर्द्धमान नामक पेपर भी चालू किय था। आप कई सालों तक पंजाब मरचेंट एसोशिएसन के मेम्बर रहे। इस समय आप लाहोर ग्राम वेभर एसोशिएसन के सेक्रेटरी, भछूतोद्धार कमेटी, स्वराज सभा तथा एस० एस० जैन सभा, की व्यवस्थापक कमेटी के मेम्बर हैं। इसी तरह श्री अमर जैन होस्टल लाहोर की लोकल कमेटी के मेम्बर हैं। आप विधवा विवाह के बढ़े हामी हैं । आपने बीसियों विधवाओं का सम्बन्ध जैनियों से करा दिया है। आपके यहां लाला शिब्बूमल जैन अनारकली के नाम से क्राकरी विजिनेत होता है। लाला गंडामलजी भी "शिब्बूमल गंडामल" के नाम से क्राकरी विजिनेस करते हैं।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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