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________________ ओसवाल जाति का इतिहास चलकर इसी परिवार के पुरुष जांजगजी जैसलमेर की राजकुमारी गंगा महाराणी के साथ करीब ३५० वर्ष पूर्व बीकानेर आये । आपके पुत्र रामसिंहजी को तत्कालीन बीकानेर महाराजा ने खजाने का काम - इनायत किया। इसी समय से इस परिवारवाले खजांची कहलाते चले आ रहे हैं। ' . रामसिंहजी के पुत्र वेणीदासजी का परिवार ही इस समय बीकानेर में निवास कर रहा है। इसी परिवार में आगे चलकर सेठ उदयभानजी हुए। इनके कुशलसिंहजी और किशोरसिंहजी नामक दो पत्र हए। किशोरसिंहजी का परिवार नागोर चला गया। वेणीदासजी के बाद क्रमशः पीरराजजी, सुन्दर दासजी, तखतमलजी, मैनरूपजी, गेंदमलजी, हुए । गेंदमलजी के तीन पुत्र हुए आसकरनजी, धनसुखदासजी और मैंनचंदजी। इनमें से धनसुखदासजी के बाद क्रमशः कस्तूरचंदजी, और हरकचन्दजी हुए । हरकचंद जी के चार पुत्र अमरचंदजी, आबडदानजी, तेजकरनजी और सूरजमलजी हए । वर्तमान फर्म सेठ तेजकरनजी के पुत्र सेठ प्रेमचंदजी की है । सेठ प्रेमचंदजी यहाँ के स्टेट जौहरी हैं । आप मिलनसार व्यापार चतुर और धार्मिक पुरुष हैं। आपने अपकी एक ब्रांच कलकत्ता में भी जवाहरात का व्यापार करने में लिये खोली। इसके अतिरिक्त अजीतमल माणकचंद के नाम में साझे में भी एक कपड़े की फर्म खोल कर व्यापार की उन्नति की । आपने धार्मिक कार्यों में बहुत खर्च किया। आप कई जगह कई सभा सोसाइटियों के सभापति और मेम्बर रहे। आपको बीकानेर श्री संघ ने एक बहुत ही सुन्दर मानपत्र भेंट किया है। जिसमें आपकी उदारता, सहृदयता और धार्मिकता की तारीफ की गई हैं। भापके इस समय माणकचंदजी, मोतीचन्दजी और - हीराचंदजी नामक तीन पुत्र हैं। माणकचन्दजी व्यापार में भाग लेते हैं । खजांची विजयसिंहजी का खानदान, भानपुरा इस खानदान वाले सजनों का पहले निवास स्थान मारवाड़ था। इनकी उत्पत्ति चौहान राजपूतों से हुई। ऐसा कहा जाता है कि इस परिवार के पूर्व पुरुषों ने सम्राट अकबर के प्रांतिय खजाने का काम किया था। अतएव खजांची कहलाये। पश्चात् बादशाहत् की हेराफेरी से इस परिवार के पुरुष घूमते हुए महाराजा यशवंतराव प्रथम के राजत्व काल में रामपुरा भानपुरा चले आये। . इस परिवार में आगे चलकर तनसुखदासजी नामक एक बड़े बीर और प्रतिभासंपन्न व्यक्ति हुए। कहा जाता है कि महाराजा होल्कर की भोर से होने वाली गरासियों की लड़ाई में वे मारे गये। अतएव मुंडकनई में महाराजा ने प्रसन्न होकर उनके वंशज के लिए रामपुरा भानपुरा जिले के झारड़ा, कंजार्दा और जमूणियां के कुल ग्रामों पर जमींदारी हक्क इनायत फरमाये । इसका मतलब यह कि इन स्थानों की सरकारी आमदनी पर २) सैकड़ा दामी के बतौर आपको मिलने लगा । इसके बाद संवत् १९०६ में १००० बीघा जमीन भी आपको जागीर स्वरूप प्रदान की। इसके अतिरिक्त भी आपको कई प्रकार के हक प्रदान किये। वर्तमान में आपके वंशजों को सरकार से इस जागीर के एवज में नगदी रुपये मिलते हैं। इस समय इस परिवार में खजाँची विजयसिंहजी हैं। आर इन्दौर स्टेट के निसरपुर नामक स्थान पर अमीन हैं। आप मिलनसार और सज्जन व्यक्ति हैं । जहां २ आप अमीन रहे वहां २ आप बड़े लोकप्रिय रहे। इस समय आपके अजीतसिंह और बलवन्तसिंह नामक दो पुत्र हैं। ५९६,
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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