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________________ खजांची लकड़ संवत् १९१६ में रायचूर आये, तथा वहाँ से बलारी आये और कपड़े का व्यापार शुरू किया। आप बड़े हिम्मतवर तथा व्यापार चतुर व्यक्ति थे । आपने अपने हाथों से ८-१० लाख रुपयों की सम्पत्ति कमाई। सम्वत् १९६० में आप स्वर्गवासी हुए। आपके भतीजे सेठ दूंगरचन्दजी भी आपके साथ व्यापार में मदद देते थे, उनका भी सम्वत् १९६५ के करीब स्वर्गवास हुआ। डूंगरचन्दजी के हजारीमलजी, बस्तीमलजी तथा मगनीरामजी हुए, इनमें हजारीलालजी, सेठ चत्राजी के नाम पर दत्तक गये । इनका संवत् १९६५ में स्वर्गवास हुआ । तथा इनके पुत्र लच्छीरामजी सम्बत् १९८४ में स्वर्गवासी हो गये। सेठ वस्तीरामजी ने . राखी के मन्दिर की प्रतिष्ठा कराई है । आप सम्वत् १९७५ में स्वर्गवासी हो गये। वर्तमान समय में इस कुटुम्ब में बस्तीरामजी के पुत्र आईदानजी तथा लच्छीरामजी के पुत्र सम्पतराजजी हैं। आपकी दुकान चत्राजी डूंगरचन्द के नाम से ब्याज का काम करती है। यह दुकान बलारी के ओसवाल पोरवाल फर्मों को मुकादम है । तथा बहुत मातवर मानी जाती है। इस दुकान के भागीदार सेठ आसूरामजी बागरेचा सिवाणा निवासी हैं। आपके परिवार में सेठ भोजाजी सीवाणे के नामांकित व्यकि थे, आपके पौत्र परशुरामजी संवत् १९४४ में बलारी आये, तथा कपड़े का व्यापार शुरू किया । संवत् १९६७ में आप स्वर्गवासी हुए। आसूरामजी "आसूराम" बहादुरमल के नाम से कपड़े का घरू व्यापार करते हैं। आप समझदार तथा होशियार पुरुष हैं । आपके पुत्र बहादुरमलजी १५ साल के हैं। सेठ मालचन्द पूनमचन्द लँकड़, चिंचवड़ ( पूना) इस परिवार के मालिक खांगटा (पीपाड़ के पास.) के निवासी हैं। । वहां से सेठ बरदीचन्दजी लूकड़ संवत् १८८० में ताथवाड़ा ( चिंचवड़ के पास ) आये और यहाँ दुकान की। इनके मालचन्दजी तथा मगनीरामजी नामक २ पुत्र हुए । मालचन्दजी संवत् १९५० में चिंचवड़ आये । संवत् १९६३ में मापका स्वर्गवास हा। सेठ मालचन्दजी के पूनमचन्दजी और मीकमचन्दजी तथा मगनीरामजी के गलाबचन्दजी और कालूरामजी नामक पुत्र हुए । भीकमचन्दजी जातिउन्नति व धार्मिक कामों में सहयोग लेते रहे । संवत् १९७४ में आपका स्वर्गवास हुआ। इस समय इस परिवार में सेठ गुलाबचन्दजी लूँकड़ तथा सेठ पूनमचन्दजी के पुत्र रामचन्द्रजी, रघुनाथजी, गणेशमलजी तथा सूरजमलजी एवं कालूरामजी के पुत्र किशनदासजी विद्यमान हैं। सेठ रामचन्द्रजी लू कढ़ शिक्षाप्रेमी सज्जन हैं । आप श्री फतेचन्द जैन विद्यालय चिंचवड़ के प्रेसीडेन्ट व खजानची हैं । आपके छोटे भ्राता व्यापार में भाग लेते हैं। आप चिंचवड़ के प्रतिष्ठित व्यापारी हैं। यह परिवार स्थानकवासी आम्नाय का मानने वाला है। खजांची सेठ प्रेमचन्द माणकचन्द खजांची, बीकानेर इस परिवार वाले कांधलजी राजपूत पहले देवी कोट नामक स्थान में रहते थे वहीं ये जैनी बने भौर बोहरगत का व्यापार करने लगे। ऐसा करने के कारण इनके वंशज कांधल बोहरा कहलाये। आगे क स्थान में रहते थे वहीं ये जैनी बने ५९५
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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