SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1223
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सची सुि पाटने में उनकी १५०० ) यहाँ से किशनगढ़ गये । का विवाह यहाँ के लोढ़ा परिवार में हुआ था। राजमलजी तक कोटा अथवा सालियाना की जागीर थी । मम्बइया राजमलजी संवत् १९६० तक अजमेर रहे राजमलजी का लगभग १० साल पूर्व शरीरावसान हुआ। हिम्मतमलजी के नाम पर प्रतापमलजी दत्तक आये । इस समय इस परिवार के कोई व्यक्ति छीपाबड़ौद में निवास करते हैं, इनका वहाँ जागीरी का एक गाँव भी था, वह राजमलजी तक रहा। जब उनकी हवेलियां बिकीं तब जबलपुर वालों ने व लोड़ों मे ली, आज भी भिन्न २ व्यक्तियों के सावे में उनकी इमारतें व नोहरे उनके नामकी याद दिला रही हैं। सती, सुती सुचिन्ती गौत्र की उत्पत्ति - कहते हैं कि देहली के सोनीगरा चौहान राजा के पुत्र बोहित्थ कुमार को सांप ने डस लिया, जिससे उनकी मृत्यु हो गई । जब उसके शव को दाह संस्कार के लिये ले गये, तो राह में जैनाचार्य श्री वर्द्धमान सूरिजी अपने पांचसौ शिष्यों के साथ तपस्या कर रहे थे। आचार्य मे राजा की प्रार्थना से उसके कुमार को सचेत किया, इससे राजा ने जैन धर्म स्वीकार किया। इनके पुत्र को संवत् १०२६ में जैनाचार्य ने सचेत किया, इसलिये आगे चलकर उनके वंशज वाले सचेती या सुचिंती नाम से विख्यात हुए । बिहार का सुचिन्ती परिवार इस परिवार के लोगों का मूल निवासस्थान बीकानेर का है आप मन्दिर आम्नाय के उपासक हैं । इस परिवार में बाबू महताबचंदजी हुए, आपके कोई सन्तान न होने से आपके नाम पर मनेर निवासी मालकश गौत्रीय बाबू रतनचन्दजी को दत्तक लिया गया। बाबू रतनचंदजी के हीरानन्दजी और गोविन्दचन्दजी नामक दो पुत्र हुए। इनमें बाबू गोविन्दचन्दजी बड़े नामाङ्कित और प्रतापी व्यक्ति हुए । आपके हाथों में इस खानदान के व्यापार और जमीदारी की बहुत तरक्की हुई, आपका धर्म प्रेम भी बहुत बढ़ा चढ़ा था । संवत् १९६५ की अगहन सुदी १४ को अपने मकान पर राज गिरी के केस के सम्बन्ध में गवाह देते २ अचानक हार्टफेल से आपका देहान्त हो गया । आपके बाबू धन्नूलालजी, रा० सा० बाबू लक्ष्मीचंदजी और बाबू, केशरीचंदजी नामक तीन पुत्र हुए । बा० धन्नूलालजी - आपका जन्म संवत् १९४० में हुआ। आप श्री पांवापुरी, कुण्डलपुर, गुणाचा बिहार आदि स्थानों के वे० जैन मन्दिरों के मैनेजर हैं। पांवापुरी के जल मन्दिर का जीर्णोद्धार और वहाँ के तालाब का पकोद्धार भी आप ही के समय में हुआ। इसके सिवाय पांवापुरी के गाँव मन्दिर का विस्तार अनेकानेक धर्मशालाओं का निर्माण आप ही के समय में हुआ। आपके मैनेजर शिप में इस तीर्थ की रोनक में बड़ी वृद्धि हुई । आपके बाबू जवाहरलालजी और ज्ञानचन्दजी नामक दो पुत्र हैं। बाबू जवाहरकाजी के विमलचन्दजी और शान्तिचन्दजी नामक दो पुत्र हैं । रा० सा० बाबू लक्ष्मीचन्दनी- आपका जन्म संवत् १९४४ में हुआ। आप बिहार के ऑनरेरी ५७३
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy