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________________ मोसवाल जाति का इतिहास सेठ पूनमचन्दजी तथा लक्ष्मीचन्दजी - आपने संवत् १९५२ में केसरियाजी का एक बड़ा संघ निकाला, इसमें आपने ६० हजार रुपये व्यय किये । संवत् १९५४ में मारवाड़ में अनाज महंगा हुआ, तब इन भाइयों ने अनाज खरीद कर पौने मूल्य में गरीब जनता को बिक्री किया, इस सेवा के उपलक्ष्य में जोधपुर दरबार महाराजा सरदारसिंहजी ने सिगेपाव, कड़ा, दुशाला आदि इनायत किया । इन बम्धुओं बहुत से कुए खुदवाये, आप बन्धु बाली के नामांकित व्यक्ति हुए। आपका खानदान यहाँ “सेठ” के नाम से पुकारा जाता है। आप दोनों बन्धु क्रमशः संवत् १९७३ तथा १९७६ में स्वर्गवासी हुए । सेठ पूनमचन्दजी के पुखराजजी, भागचन्दजी, रतनचन्दजी तथा सन्तोषचन्दजी नामक चार पुत्र हुए तथा सेठ लखमीचन्दजी के कपूरचन्दजी, केसरीचन्दजी तथा बख्तावरचन्दजी नामक तीन पुत्र हुए। इनमें केसरीचन्दजी तथा भागन्दचजी स्वर्गवासी हो गये हैं। शेष सब विद्यमान हैं । आप बन्धुओं का "लखमीचन्द पूनमचन्द" के नाम से मोरा बन्दर में जमीदारी तथा बैकिंग का कारबार होता है । पूखराजजी मोरा बन्दर की म्युनिसिपल कमेटी के मेम्बर हैं तथा सन्तोषचन्दजी ने गत वर्ष बी० एस० सी० का इम्तिहान दिया है। आप गोड़वाड़ के प्रथम बी० एस० सी० हैं । यह परिवार गोड़वाड़ के ओसवाल समाज में नामांकित माना जाता 1 मम्बइया मम्बइया परिवार, अजमेर हालांकि मम्बइया परिवार का आज अजमेर शहर में कुछ भी कारबार नहीं है, लेकिन उनके द्वारा बनाइ हुई लाखों रुपयों की लागत की हवेलियां, नोहरे, हजारों रुपयों की बनी हुई दादाबाड़ी में छतरियां इनके गत गौरव का पता दे रही है। संवत् १९३९ में लगभग उनका काम कमजोर हुआ, उसके पूर्व १२०-१२५ वर्षों से वे अजमेर शहर के नामी गरामी करोड़पति श्रीमन्त माने जाते थे । उनका बैकिंग व्यवहार अजमेर में मूलचन्द धनरूपमल के नाम से और बाहर अनोपचन्द मूलचन्द के नाम से चलता था । अजमेर, रतलाम, बदनोर, उज्जैन, छघड़ा, बम्बई कलकत्ता, टोंक, झालरापाटन, जयपुर, कोटा वगैरह स्थानों में आपकी दुकानें थीं। इस परिवार के आगमन, व्यवसाय के आरम्भ, उन्नति व सार्वजनिक कामों का सिलसिलेवार कुछ भी वृत्त मालूम नही होता है। कहा जाता है कि संवत् १८६५ में इनका आगमन अजमेर हुआ और मरहठा सरदारों व फोजों के साथ सम्बन्ध रखने से इनका अभ्युदय हुआ। । मम्बइया अनोपचन्दजी के पुत्र मूलचन्दजी के समय में व्यवसाय का आरम्भ होना माना जाता है । मूलचन्दजी के पुत्र धनरूपमलजी के समय में इनके व्यापार और जाहोजलाली की बहुत उन्नति हुई । अजमेर में पूज्य दादा जिनदत्तसूरिजी की समाधि दादाबाड़ी में इस परिवार की छतरियाँ बनी हुई हैं। अजमेर की धर्म संस्थाओं के प्रबन्ध का भार भी आप ही के जिम्मे था । मम्बया धनरूपमलजी के पुत्र बाघमलजी हुए और बाघमलजी के नाम पर राजमलजी दत्तक आये । राजमलजी और उनके पुत्र हिम्मतमलजी के समय में इनका काम कमजोर हुआ। हिम्मतमलजी ५७२
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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