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________________ खांटेड बैशाख सुदी ५को इस मन्दिर की प्रतिष्ठा हुई जिसमें ध्वजादण्ड और कलश चढ़ाने में आपके पैंतीस हजार रुपये खर्च हुए। धर्म प्रेम ही की तरह भापका विद्याप्रेम भी सराहनीय है। शिवपुरी बोर्डिङ्ग, जोधपुर सरदार स्कूल, ओशियां बोडिंग हाउस, न्यावर जैन गुरुकुल इत्यादि संस्थाओं में आपने हजारो रुपयों की मदद पहुंचाई। आपने ओशियां गुरुकुल के १३५ छात्रों तथा उनके अध्यापकों को ५ हजार रुपये व्यय करके श्री शत्रुजयजी तथा आबूजी की यात्रा कराई और स्वयं आप साथ गये। अपने जीवन में मापने अभी तक करीब डेढ़ लाख रुपया दान धर्म में खर्च किया । बगदी के जैन समाज में यह खानदान बहुत ही मनमण्य और दानवीर है। सेठ गुलाबचन्दजी खांटेड़-आपका जन्म संवत् १९५१ में हुभा। आप भी बड़े सजन उदार तथा नवीन विचारों के सज्जन हैं। आपके हृदय में देश-प्रेम बहुत हैं। आप शुद्ध खादी के वस्त्र धारण करते हैं। आपकी दुकान कंजीवरम् (मद्रास) में हंसराज गुलाबचंद खांटेड के नाम से बैकिंग का व्यापार करती है तथा अच्छी प्रतिष्ठित मानी जाती है। आपके सात पुत्र हैं जिनके नाम अभैराजजी, सम्पतराजजी अमृतराजजी, सोहनराजजी, सुदर्शनमलजी, रणजीतमलजी, तथा पृथ्वीरानजी हैं। श्रीयुत गणेशमलजी का जन्म संवत् १९५९ का है। आप भी बड़े योग्य धर्मप्रेमी तथा अपडेट विचारों के सज्जन हैं। आपके सामाजिक विचार बहुत सुधरे हुए हैं। आपके दो पुत्र हैं जिनके नाम श्री मिह लालजी तथा जवाहिरलालजी हैं। सेठ मुलतानमलजी के जसवंतराजजी तथा मानमलजी नामक दो पुत्र हुए आपका जन्म संवत् १९४५ में तथा संवत् १९५१ में हुआ। आप दोनों भ्राताओं का कारवार अलग २ होता है। सेठ जसवन्तराजजी पुनमलि (मद्रास) में मुलतानमल जावंतराज के नाम से वैकिंग व्यापार करते हैं। आपके मांगीलालजी, विजयराजजी तथा मदनलालजी नामक तीन पुत्र हैं। इसी प्रकार सेठ मानमलजी खांटेड़ का पुनमलि में मुलतानमल मानमल के नाम से कारबार होता है आपके पारसमलजी, शांतिलालजी तथा नेमीचन्दजी मामक तीन पुत्र है। यह कुटम्ब भी पुनमलि में अच्छा प्रतिष्ठित माना जाता है। सेठ लखमीचंद पूनमचंद खांटेड़, बाली (गोड़वाड़) इस परिवार के पूर्वज खांगड़ी जागीरवार के कामदार थे, वहाँ के ठाकुर से अनबन हो जाने के कारण इन्होंने संवत् १९०५ के लगभग अपना निवास बाली में बनाया। यहां से सेठ मनरूपजी संवत् १९३० में पूना गये, तथा यहाँ सर्विस की। वहाँ से भाप मोरा बन्दर (बम्बई के पास) गये, तथा यहाँ दुकान की। जब बृटिश सरकार ने यहाँ आंगरे सरदार की मिस्कियत नीलाम की, उस समय मापने एक पारसी गृहस्थ की मदद से उसे खरीदा, इसमें आपको बहुत लाभ हुभा। भापके छोटे भाई रूपजी भी व्यापार में सहयोग देते थे । सेठ मनरूपजी के टेकचन्दजी तथा रूपजी के बुधमलजी नामक पुत्र हुए। सेठ टेकचन्दजी नामांकित व्यक्ति हुए। आपने बाली में कुआ तथा अवाला बनवाया। आपके पुत्र पूनमचन्दजी तथा बुधमलजी के पुत्र लक्ष्मीचन्दजी हुए। सेठ टेकचन्दजी संवत् १९१८ में स्वर्गवासी हुए।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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