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________________ पोसवाल जाति का इतिहास सेठ हंसराजजी खांटेड़-आपका जन्म संवत् १९१० में हुआ । आप बड़े बुद्धिमान तथा न्यापार कुशल पुरुष थे। आप मारवाद से जालना (निजाम) गये । इस मुसाफिरी में आपको बगड़ी से अजमेर तक पैदल रास्ते से आना पड़ा था। थोड़े दिन जालने में रहकर आप मद्रास माये । और यहाँ आकर पल्ला• परम् में बैंकिंग की दुकान स्थापित की। तदनन्तर आपने पूनवल्ली में अपनी फर्म स्थापित की। संवत् १९४० में आपने अपने छोटे भ्राता मुल्तानमलजी को भी बुला लिया । आपकी बुद्धिमानी भौर दूरदर्शिता से आपकी फर्मों को बहुत शीघ्रता से तरकी मिलती गई। कुछ समय पश्चात् आप अपने भाई मुलतानमक जी और बड़े पुत्र सागरमलजी के जिम्मे व्यापार का काम छोड़कर देश चले गये और धर्म ध्यान में अपना समय व्यतीत करते हुए आप संवत् १९६६ में स्वर्गवासी हुए। आपके छोटे भाई मुल्तानमलजी का स्वर्गवास संवत् १९६५ में हुआ। दोनों भाइयों की मृत्यु हो जाने पर आपकी फर्मे अलग २ हो गई। सेठ हंसराजजी के चार पुत्र हुए जिनके नाम क्रमशः सागरमलजी, गुलाबचन्दजी, गणेशमलजी तथा बुद्धीलालजी हैं। सेठ सागरमलजी खांटेड़-आपका जन्म संवत् १९३२ में हुमा। आप बड़े योग्य, सजन, व्यापारकुशल तथा उदार पुरुष हैं । आपके हाथों से इस फर्म को बहुत तरक्की मिली संवत् १९५९ में आपने और मुस्तानमलजी ने ट्विटर में अपनी फर्म का स्थापन किया। जिसमें आपको खूब सफलता मिली । श्री सागरमलजी का भी राज्य दरवार में बहुत अच्छा मान है। आप टूिवल्लूर कोकल बोर्ड के पांच सालों तक मेम्बर रहे। इसी प्रकार चिगनपेठ सेशनकोर्ट के आप जूरी भी रहे। संवत् १९६९ से संवत् १९८० तक आपके भाई मापसे अलग २ हुए। सेठ सागरमलजी के कोई सन्तान न होने से मापने अपने छोटे भाई चुनीलालजी को अपने नाम पर दत्तक ले लिया। श्री चुनीलालजी का जन्म संवत् १९११ की फाल्गुन शुक्ल तृतीया को हुभा । आप बड़े सजन, उदार, व्यापारकुशल तथा सुधरे हुए विचारों के सज्जन हैं । टूिवल्लूर की पडिलक और राजदरबार में आपको बहुत अच्छा सम्मान प्राप्त है। आप यहाँ पर ऑनरेरी मजिस्ट्रेट हैं और आपको फर्स्ट क्लास के अधिकार प्राप्त है। इसी प्रकार यहाँ के क्लबों, सभाओं और सोसायटियों में आप बड़ी दिलचस्पी से भाग लेते हैं। आपके एक पुत्र हैं जिनका नाम श्री नवरतनमलजी है। इस परिवार की दान धर्म और सार्वजनिक कार्यों की ओर भी अच्छी रुचि रही है। सबसे प्रथम संवत् १९९१ में श्री हंसराजजी के हाथों से बगड़ी के मन्दिर की प्रतिष्ठा हुई और आपकी तरफ से उस पर ध्वजादण्ड चढ़ाया गया। संवत् १९६५ में सुप्रसिद्ध मुरडावा के प्राचीन मन्दिर के जीर्णोद्धार करवा ने में भी बहुत सहायता दी, और उस पर ध्वजादण्ड चढ़ाया गया। इसी प्रकार करमावस और वारणा के मन्दिरों की प्रतिष्ठा भी आपके द्वारा हुई। इसी खानदान की तरफ से चण्डावल स्टेशन पर एक धर्मशाला भी बनाई गई है। श्री सागरमलजी अपने पिता की तरह ही दानशूर और उदार व्यक्ति हैं। मद्रास श्वेताम्बर जैन मंदिर की प्रतिष्ठा में आपने बहुत बड़ी रकम दान दी और उसपर ध्वजादण्ड भी आप ही की तरफ से चढ़ाया गया। इसी प्रकार विकावस (मारवाड़) के मन्दिर की प्रतिष्ठा में भी आपने बहुत बड़ी सहायता दी ओर ध्वजा दण्ड चढ़ाया। बगड़ी के जैन मन्दिरों के जीणोद्धार में भी आपने दस हजार रुपये प्रदान किये और भापने करीब तीन वर्षों तक परिश्रम करके इस काम को पूरा किया। संवत् १९८४
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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