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________________ समदाड़या निवास बनाया। आपका संवत् १९९६ में शरीरावसान हुवा, इसी साल मार्गशीर्ष बढी २ को भापके पुत्र गोड़ीदासजी का जन्म हुभा। सेठ गोड़ीदासजीं कांसटिया-आपकी दिन चा का विशेषभाग धार्मिक विषय की चर्चा, प्रति क्रमण व सामयिक करने में व्यतीत होता था। सम्पत्तिशाली होते हुए भी प्रतिदिन अपनी बिरादरी के बच्चों को आप धार्मिक शिक्षा देते थे, नियम पूर्वक प्रतिवर्ष आप जैन तीर्थों की यात्रा करने जाते थे। संवत् १९७९ में आपने एक उपाय की लामत के २२.१) देकर उसे श्रीसंघ के अर्पण किया। सं० १९८५ में आपकी धर्मपत्नी श्रीमती मिश्रीवाई के स्वर्गवास के समय आपने ५ हजार रु. शुभ कार्यों में लगाने के निमित्त निकाले । आप मक्षी तीर्थ के सभासद् और श्वेताम्बर जैन पाठशाला के प्रेसिडेण्ट थे, आपकी धार्मिकता, न्यायशीलता और प्रामाणिकता के कारण ओसवाल समाज व अन्य समाजों में आपका अच्छा सम्मान था। इस प्रकार प्रतिष्ठामय जीवन बिताते हुए आप संवत् १९८६ की वैशाख सुदी ५ को स्वर्गवासी हुए। आपकी मोजूदगी में आपके पुत्र ममीचन्दजी कांसटिया ने १० हजार रुपयों का दान शुभ कार्यो के लिये किया। . सेठं अमीचन्दजी कांसटिया-आपका जन्म संवत् १९३० में हुआ। भापका बाल्प और यौवन काल पिताजी की देखरेख में गुजरा, भतः आपकी भी धार्मिक कामों की अच्छी रुचि स्थानीय श्वेताम्बर जैन पाठशाला में आपकी ओर से एक धर्माध्यापक रहते हैं। बाप भोसवाल समाज के सम्मानीय गृहस्थ एवम् भोपाल के प्रतिष्ठि व्यापारी हैं, आपकी फर्म पर "संतोषचन्द रिखबदास कांसटिया" के नाम से साहुकारी लेन-देन, हुंडी चिट्ठी, रहन व सराफी व्यापार होता है। समदड़िया समदड़िया गौत्र की उत्पत्ति-समदड़िया गौत्र की उत्पत्ति के सम्बन्ध में महाजन वंषा मुक्तवली में लिखा है कि पदमावती नगर के समीप सोदा राजपूत समंदसी अपने भाठ पुत्रों सहित बड़ी गरीबी हालत में रहता था। जैनाचार्य श्रीजिनवचभ सूरिजी के उपदेश से यह धार्मिक जीवन बिताने लगा। समंदसीको सेठ धनासा पोरवाल ने अपना सहधर्मी समझकर व्यापार में अपना भागीदार बनाया, तथा इनके आठों पुत्रों को व्यापार के लिए समुद्र पार भेजा। इन्होंने मोक्तिक, विद्रुम, अम्बर आदि के व्यापार में असंख्यात द्रव्य उपार्जित किया। समंदसी की संतान होने और समुद्र यात्रा करने से इनके वंशज समदरिया कहलाये। इस प्रकार समदड़िया गौत्र प्रसिद्ध हुभा। समदड़िया मेहता सुकनमलजी मोहनमलजी का खानदान, जोधपुर इस परिवार के पूर्वज समदोजी के पौत्र कोजूरामजी, जब राव जोधाजी ने जोधपुर बसाया, तब जोधपुर आये। इनको होशियार समझकर राव जोधाजी ने अपना दीवान बनाया। इनके प्रपौत्र मेहता समरथजी को राव मालदेवजी अपने साथ गुजरात के गये थे । इनका पुत्र मकबर के साथ वाली लड़ाई में मारा
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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