SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ २ ] भी कुछ सुभीता हो गया, तथा इनको भी कुछ कुछ आमदनी होने लगी। एक महीने में इन्होंने पटेकका कर्जा चुका दिया, तथा ५) निज की पूंजी के कर लिये। इसी समय वहाँ पर एक ओर कपास का तथा दूसरी ओर खजूर का मौसिम चला। इस मौसम से भी आपने खूब लाभ उठाया, तथा ४ महीने में ८०) जोड़ लिये। जब इनके पिताजी को यह बात मालूम हुई, तो उन्हें बड़ी प्रसन्नता हुई, तथा वे भी यहीं आकर अपना धंधा करने लगे। इसी बीच जामनेर के प्रसिद्ध सेठ लक्खीचन्दजी ललवाणी को एक पुत्र दत्तक लेने की आवश्यकता हुई। उनके पास इसके लिये करीब १२ लड़के उम्मीदवार होकर आये। मगर उनमें से उन्हें एक भी पसन्द न आया। जब उन्हें श्री राजमलजी की खबर लगी तो उनके पिता रामलालजी ललवाणी के पास उन्होंने खबर भेजी। कुछ समय पश्चात् स्वयं सेठ लक्खीचन्दजी, राजमलजी को देखने के लिये "मुड़ी" गये। यद्यपि इनको शिक्षा बहुत कम हुई थी, फिर भी अपनी प्रतिभा के बल से इन्होंने सेठ लक्खीचन्दजी को आकर्षित कर लिया और उन्होंने बड़ी प्रसन्नता के साथ संवत् १९६३ में इन्हें दत्तक ले लिया। इसके साथ ही साथ आपके भाग्य ने एक जबर्दस्त पलटा खाया। सेठ राजमलजी के बाल्य जीवन पर गंभीरता पूर्वक विचार करने से पता चलता है कि यद्यपि इनका घर गरीब था, यद्यपि इनकी सब परिस्थितियाँ इनके प्रतिकूल थीं, और यद्यपि इनकी शिक्षा संतोषजनक रूप में नहीं हुई थी, फिर भी इनके अन्दर कुछ ऐसी विशेषताएं विद्यमान थीं, जिन्होंने उन संकर की घड़यों में जिनमें-कि माता पिता भाई वगैरा सबने इनका साथ छोड़ दिया था-इनके उत्साह धैर्य व सत्साहस को कायम रक्खा और ये एक बांके कर्मवीर की तरह मैदान में डटे रहे । आगे जाकर इन्हीं विशेषताओं का प्रताप था, कि इतने महान घर में जाने पर भी इन्हें अहंकार ने स्पर्श तक नहीं किया। प्रत्यक्ष जीवन में हम स्पष्ट देखते हैं कि लोगों को थोड़ी सी सम्पत्ति और सौभाग्य के मिलते हो उनकी आंखों में अहंकार और मादकता का नशा छा जाता है, तथा शीघ्र ही वे अपने कर्तव्य और चरित्र से भ्रष्ट हो जाते हैं। मगर यह आपकी बड़ी विशेषता थी कि सौभाग्य के इस प्रलोभन में भी आप वैसे ही सादे और कर्मशील बने रहे जैसे पहले थे। बल्कि आपकी विनयशीलता दिन दिन और जागृति होती गई। इस नवीन घर में आने के बाद आपने अपने पिता सेठ लक्खीचंदजी की तन मन से सेवा करना प्रारम्भ किया। इसका प्रभाव यह हुआ कि जब तक सेठ लक्खीचंदजी जीवित रहे, तब तक कभी उन्होंने इनको बिना साथ बैठाये भोजन नहीं किया। . संवत् १९६४ में सेठ लक्खीचन्दजी का स्वर्गवास हुआ। मृत्यु के समय करीब १ लाख रुपया वे अपने कुटुम्बियों तथा रिश्तेदारों को दे गये। तथा २ लाख रुपया उनकी मृत्यु के पश्चात् खर्च किये गये। सेठ लक्खीचन्दजी के पश्चात् सारे कार्य का बोझा आप पर आकर पड़ गया। केवल १३ वर्ष की उम्र में इतने बड़े काम और जमीदारी को संभालना आसान बात नहीं थी। मगर इन्होंने अत्यन्त दूरदर्शिता और बुद्धिमानी से इस काम को संचालित किया। संवत् १९७१ में आपका विवाह हैदराबाद (दक्षिण )के मशहूर सेठ दीवानबहादुर थानमलजी लूणिया के यहाँ हुआ। आपके हाथों में सब प्रकार की जिम्मेदारी आते ही राजनैतिक, सामाजिक, और धार्मिक सभी क्षेत्रों में आपकी प्रतिभा चमक उठी ।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy