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________________ भोसवास जाति का इतिहाम यहाँ आपने कपड़े और गल्ले का काम करने के लिये फर्म स्थापित की। आपकी बुद्धिमानी से फर्म की बहुत तरक्की हुई । आपका स्वर्गवास हो गया। इसी प्रकार आपके भाई नेमीचन्दजी का भी स्वर्गवास हो गया। आपके पुत्र डालचन्दजी, बींजराजजी और बिरदीचंदजी स्वतंत्र रूप से भोपाल में व्यापार करते हैं। सेठ फतेचंदजी के आनंदचन्दजी, अजीतमलजी, लालजी तथा मालचन्दजी नामक चार पुत्र हैं। आजकल आप सब लोग स्वतंत्र रूप से व्यापार करते हैं। सेठ अजीतमलजी बीकानेर के खजांची प्रेमचंदजी माणकचंदजी के साझे में कलकत्ता में दुकान कर रहे हैं। आपकी फर्म पर कपड़े का थोक व्यापार हो रहा है। आप मिलसार और उत्साही व्यक्ति हैं आपके पीरूदानजी नामक एक पुत्र हैं। सेठ पन्नालाल सुगनचन्द पारख, चुरू सेठ लालचन्दजी पारख के पूर्वजों का मूल निवास स्थान बीकानेर था। वहाँ से रिणी होते हुए चुरू नामक स्थान पर आकर बसे । चुरू में सेठ जोधमलजी हुए। जोधमलजी के चार पुत्रों से में मुकन्ददासजी और अनेचन्दजी के परिवार वाले शामलात में व्यापार करते हैं। मुकन्ददासजी के पश्चात् क्रमश उनके पुत्र गजराजजी, नवलचन्दजी, पनालालजी और सुगनचन्दजी हुए। सेठ अनेचंदजी के बाद क्रमशः घमण्डीरामजी जवाहरमलजी और लालचन्दजी हुए। सेठ लालचन्दजी बड़े व्यापार कुशल और सज्जन व्यक्ति हैं। सेठ सुगनचन्दजी भी मिलनसार और योग्य सजन है। आजकल आप दोनों सज्जन मेसर्स पनालाल सुगनचन्द के नाम से क्रास स्ट्रीट कलकत्ता में थोक धोती जोड़ों का व्यापार करते हैं। यह फर्म सम्वत् १८९२ में स्थापित हुई थी। सेठ लालचन्दजी के जयचन्दलालजी नामी एक पुत्र हैं। बरमेचा बरमेचा गौत्र की उत्पत्ति-महाजन वंश मुक्तावली में लिखा है कि संवत् ११६७ में रणतभंवर के राजा लालसिंह को अपने सातों पुत्रों सहित मुनि श्री जिनवल्लभ सूरिजी ने जैनधर्म का प्रतिबोध देकर श्रावक बनाया। इन्ही सातों पुत्रों के नाम से सात गौत्र की उत्पत्ति हुई। इनमें से बड़े पुत्र ब्रह्मदेव से बरमेचा गौत्र की स्थापना हुई। सेठ साहबराम बरदीचंद बरमेचा, नाशिक ' इस परिवार का मूल निवास जोधपुर के समीप दहीजर नामक स्थान है। यह परिवार जैनस्थानकवासी आम्नाय का मानने वाला है। देश से व्यापार के निमित्त सेठ साहबरामजी बरमेचा लगभग संवत् १९०५ में नाशिक आये, तथा म्यापार आरम्भ किया। आपके मगनमलजी, छगनमलजी तथा बरदीचन्दजी नामक तीन पुत्र हुए। इन भाइयों में से सेठ बरदीचन्दजी बरमेचा ने सेठ चुन्नीलालजी नवलमलजी कूमठ के साथ साहबराम बरदीचन्द के नाम से किराने का व्यापार किया तथा इस दुकान के व्यापार तथा सम्मान को ज्यादा बढ़ाया। भाप अपनी जाति के बड़े शुभचिंतक व्यक्ति थे। आप संवत् ५५४
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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