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________________ पारख गौत्र की उत्पत्ति-बारहवीं शताब्दी के अंतिम समय में चंदेरी नगरी में राठौर खरहस्थसिंह राज्य करते थे। इनके चार पुत्र अम्बदेव, निम्बदेव, भैसासाह और आसपाल हए। इन चारों पुत्रों के परिवार से बहुत से गौत्रों की स्थापना हुई, जिसका अलग २ परिचय स्थान २ पर दिया गया है। भैसाशाह मांडवगढ़ में एक प्रसिद्ध व्यक्ति हो गये हैं। इन्होंने शत्रुजय का एक बहुत बड़ा संघ निकाय था, तथा वहाँ का जीर्णोद्धार करवाया था। इनके चौथे पुत्र पासूजी को आहड़नगर के राजा चन्द्रसेन ने अपना जौहरी नियुक्त किया था। वहीं एक बार हीरे की सच्ची परीक्षा करने के कारण राजा द्वारा पारखी की पदवी मिली । आगे चलकर यही पदवी पारख गौत्र के रूप में परिणत हो गई। लाला दिलेरामजी जौहरी (लाहौरी) का खानदान, देहली इस खामदान के मूल पुरुष लाला दिलेरामजी हैं। आप देहली के ही निवासी हैं। आपका परिवार यहाँ लाहोरी के नाम से मशहूर हैं। आप श्वेताम्बर जैन स्थानकवासी आन्नाय के मानने वाले हैं। लाला दिलेरामजी-आप पंजाब के सुप्रसिद्ध महाराजा रणजीतसिंहजी के खास जौहरी थे। देहली में आप बड़े नामांकित पुरुष हो गये हैं। आपके पुत्र लाला दुलीचन्दजी तथा लाला सरूपचन्दजी हुए । लाला दुलीचन्दजी बादशाह अकबर (द्वितीय) के खास जौहरी थे। आपके हुलासरायजी, गुलाब चन्दजी, मानसिंहजी तथा थानसिंहजी नामक पुत्र हुए। लाला हुलामरायजी जौहरी का परिवार-आपके लाला ईसरचंदजी नामक पुत्र हुए। ईसरचंदजी के लाला जगनाथजी, लाला प्यारेलालजी तथा लाला रोशनलालजी नामक ३ पुत्र हुए। लाला जगन्नाथजी नामांकित व्यक्ति हुए। आप राय बद्रीदासजी जौहरी के शागिर्द थे। भोपने कलकत्ते में भी अपनी एक फर्म खोली थी। आपका स्वर्गवास ५० सालकी आय में संवत् १९५१ में हआ। आपके पूरनचंदजी का जन्म संवत् १९२७ में हुआ। आपने उस समय बी० ए० परीक्षा पास की थी, जिस समय सारे ओसवाल समाज में एक दो ही ग्रेजुएट होंगे। आप भी जवाहरात का व्यापार करते रहे। आपका स्वर्ग वास संवत् १९५२ में हुआ। आपके नाम पर लाला रतनलालजी जोधपुर से संवत् १९५६ में दत्तक लाये गये । आपका जन्म संवत् १९४८ में हुआ। आपकी नाबालगी में आपकी दादीजी तथा लाला प्यारेलालजी व रोशनलालजी काम देखते रहे। इन दोनों सजनों का स्वर्गवास क्रमशः १९५६ तथा संवत् १९६५ में हो गया है। अब इनकी कोई संतान विद्यमान नहीं हैं। ____ लाला रतनलालजी बड़े योग्य तथा मिलनसार व्यक्ति हैं । आपके इस समय इन्द्रचन्द्रजी, हरिचन्द्रजी, ताराचन्दजी तथा कुशलचंदजी नामक ४ पुत्र हैं। आपका परिवार देहली के मोसमाल समाज में अच्छा प्रतिष्ठित माना जाना जाता है आपके यहाँ "लाला पूरनचन्द रतनलाल" के नाम से गली हीरानंद देहली में जवाहरात का व्यापार होता है। लाला मानसिंहजी मोतीलालजी जौहरी का परिवार-लाला मानसिंहजी के पुत्र लाला मोतीरामजी हुए। आपका स्वर्गवास ७० वर्ष की आयु में संवत् १९६० में हुआ। आप भी देहली के अच्छे जौहरी थे। ५१७
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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