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________________ मोसवाल जाति का इतिहास तथा राजमलजी नामक ३ पुत्र हुए। तेजमलजी ५० सालों तक मेवाड़ में हाकिम तथा मुंसरीम रहे। संवत् १९७२ में इनका शरीरान्त हमा। इसी तरह सगतमलजी तथा राजमलजी भी शाहपुरा स्टेट में तहसीलदारी आदि सर्विस करते हुए क्रमशः संवत् १९५७ तथा १९८६ में गुजरे। सगतमलजी के पुत्र सरदारमलजी विद्यमान हैं। आपका जन्म १९४३ में हुआ। आप अठारह सालों तक दीवानी हाकिम तथा वाढंडरी आफीसर और सुपरिटेन्डेन्ट जेल रहे । वर्तमान में आप वाडंडरी अफीसर हैं । भापके खानदान को "जीकारा" प्राप्त हैं आपके पुत्र मोनमलजी मेसर्स विडला ब्रदर्स की अपरगंज इयूगर मिल सिहोरा में क्यूगर केमिस्ट हैं। शाहपुरा में यह परिवार बहुत प्रतिष्ठित माना जाता है। सेठ बालचन्दजी छाजेड़, इन्दौर ___ सेठ बालचन्दजी छाजेड़ इन्दौर में बड़े प्रतिष्ठित और नामांकित व्यक्ति हो गये हैं । आपके पिता सेठ मोतीचन्दजी जावरा में रहते थे। वहीं आपका जन्म हुआ। आपके २ भाई और थे जिनका नाम गंभीर. मलजी और जीतमलजी है। इनमें से सेठ गम्भीरमलजी इन्दौर के सेठ नथमलजी के यहाँ दत्तक आये । आपके साथ २ आपके भाई भी इन्दौर आगये। सेठ गम्भीरभलजी का युवावस्था ही में देहान्त होजाने के कारण मेसर्स नथमल गम्भीरमल फर्म का संचालन आपने ही किया। आपने हजारों लाखों रुपयों की सम्पत्ति उपार्जित की । इतना ही नहीं बल्कि उसका सदुपयोग भी किया। आपने तिलक स्वराज्य फण्ड, पिपल्स सोसायटी इत्यादि संस्थाओं को बहुत द्रव्य प्रदान किया । करीब २०००० हजार रुपया लगाकर इन्दौर में भी आपने श्री आदिनाथजी का एक सुन्दर मन्दिर बनवाया । जबकि इन्दौर में जोरों का इन्फ्लुएन्जा चला था उस समय आपने ८, १० प्राइवेट औषधालय खोलकर जनता की सेवा की थी। इसमें आपने करीब १००००) रुपया खर्च किया। इसी प्रकार आपने करीब १०००००) से यहाँ एक "सुन्दरबाई भोसवाल महिलाश्रम" के नाम से एक संस्था स्थापित की। इसमें इस समय १२५ लड़कियाँ तथा स्त्रियाँ धार्मिक और व्यवहारिक शिक्षा प्राप्त कर रही हैं । भापका स्वर्गवास हो गया है। इस समय आपके भाई जीतमलजी विद्यमान हैं। इनके चार पुत्र हैं। बड़े पुत्र श्री सिरेमलजी छाजेड़ बी. ए. एल. एल० बी० हैं और इन्दौर में वकालत करते हैं । आप उत्साही और मिलनसार नवयुवक हैं। डागा डागा गौत्र की उत्पत्ति कहा जाता है कि कि संवत् १३०१ में गोड़वाद प्रांत के नागेल नामक स्थान में डूंगरसिंह नामक एक पराक्रमी और वीर राजपूत रहता था। यह चौहान वंशीय था। किसी कारण वश इसने श्री जिन कुशल सरि द्वारा जैन धर्म का प्रतिबोध पाया। इंगरसीजी के नाम से इसके वंशज डागा कहलाये। आगे चलकर इसी वंश में राजाजी और पूजाजी नामक व्यक्ति हए। उनके नाम से इस गौत्र में राजाणी और पूजाणी नामक शाखाएं हुई इनके वंशज जेसलमेर जाकर रहने लगे। इससे ये लोग जेसलमेरी डागा कहलाये । ५१२
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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