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________________ पावेचा मनीरामजी के पुत्र देवचन्दजी बड़े प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति हुए। यहां की जनता में भापका बहुत सम्मान था। एक बार आपने जनता पर लगाये गये इनकमटेक्सको सरकार से माफ करवाया था। राज्य दरबार में भी आपका अच्छा सम्मान था। आपने यहाँ मन्दिर में एक रिषभदेव स्वामी की स्त्री बनवाई। आपके नीमचन्दजी नामक पुत्र हुए। इनके नाम पर सेंट जवाहरलालजी दत्तक आये। वर्तमान में भाप ही इस परिवार के व्यवसाय के संचालक है। भाप सजन और मिलनसार व्यक्ति हैं। भापके नानालालजी भगवती. लालजी और मनोहरलालजी मामक तीन पुत्र हैं। यह परिवार सीतामऊ में बहुत प्रतिष्ठित माना जाता है। पावेका बड़नगर का चौधरी परिवार इस परिवार वालों का गौत्र पावेचा है। भाप लोगों का मूल निवास स्थान सोजत का है। करीव ३.. वर्षों से इस परिवार के लोग इधर मालवा प्रांत में आकर बस रहे हैं। कहा जाता है कि जब मारवाद से राठोद लोग इधर मालवे में आये तब उनके साथ भापके पूर्वज भी थे। रतलाम, साबुना, बदनावर बगेरह स्थानों पर जब कि राठोड़ों का अधिकार होगया तब इस परिवार वाले साबुभा में रहे । यहाँ से फिर कुछ तो समिजा चले गये और कुछ बदनावर चले आये। उपरोक परिवार पदनावर वालों का है। रूनिजा में इस खानदान के लोग कामदार वगैरह ऊँची २ जगहों पर रहे। बदनावर में भी आप लोगों काबहत सम्मान रहा। किसी कारणवश इस परिवार के लोग फिर बदनावर को छोडकर नीलाईजा इस समय बड़नगर कहलाता है-नामक स्थान पर आये। इसके पूर्व जब कि आप बदनावर में ये भापके यहाँ गल्ले का बहुत बड़ा व्यापार होता था। अतएव यहां भापकी अनाज की बहुत सी खत्तिर्या भरी हुई थीं। इस समय मौलाई के स्वतन्त्र राजा थे। इसी समय यहां बड़ो भारी दुष्काल पड़ा। इस विपत्ति के समय में सेठ साहब ने मुफ्त में धान वितरण कर जनताकी सहायता की। इससे प्रसन्न होकर सरकालीन नौलाई-नरेश ने आपको 'चौधरी का पद प्रदान किया। तब से आजकल आपके वंशज चौधरी कहलाते चले आ रहे हैं और चोधरायत कर रहे हैं। भागे चल कर इस परिवार में सेठ माणकचन्दजी हुए। माणकचन्दबी के भैरोंदानजी और लखमीचन्दजी नामक दो पुत्र हुए। भाप दोनों भाई बड़े प्रतिभा सम्पन व्यक्ति थे। यहां की जनता में आपका बहुत बड़ा सम्मान था। सारी जनता एक स्वर में आपकी भाश मानने को हमेशा तैयार रहती थी। दरबार से भी आपको बहुत सम्मान प्राप्त था। बाप कोगों को कई प्रकार के टैक्स माफ थे। आप ही के कारण इस शहर की बसावट में वृद्धि हुई तथा कई भोसगड परिवार यहां भाये । आप लोगों का स्वर्गवास होगया। सेठ भैरोंदानजी के श्रीचन्दजी और सेठ समीचंदजी के दुलिचन्दजी और जवरचन्दजी नामक पुत्र हुए। सेठ दुलिचन्दजी के पौत्र ठाकवन्दजी के पुत्र गेंदालालजी इस समय विद्यमान है। सेठ जवरचन्दजी के कोई संतान नहीं हुई। माप वहां के नामांकित व्यक्ति थे। सेठ श्रीचन्दजी के चार पुत्र हुए। जिनके माम फतेचन्दजी, बापूलालजी, कस्तूरचन्दजी और ५३.
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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