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________________ ओसवाल जाति का इतिहास इधर २ साल पूर्व आपने हीराचन्द दलीचन्द के नाम से बम्बई में भादत का व्यापार शुरू किया है। दोंडीरामजी के पुत्र माणिकलालजी, मोतीलालजी व्यापार में भाग लेते हैं । तथा हीराचन्दजी के पुत्र बदरीलालजी, कांतिलालजी तथा दलीचन्दजी के पुत्र बंशीलालजी, कन्हैयालालजी और चन्द्रकांतजी पढ़ते हैं। सेठ शिवराजजी के पुत्र शंकरलालजी इनकमटेक्स का कार्य करते हैं। सेठ हंसराज दीपचंद खींवसरा, मद्रास इस परिवार का निवास डे ( नागौर के पास ) है। इस परिवार में सेठ नगराजजी के पुत्र हंसराजजी का जन्म संवत् १९०७ में हुआ। आप उद्योगी व धार्मिक प्रवृष्टि के पुरुष थे। आप संवत् १९२९ में मद्रास आये। तथा खेठ अगरचन्द मानचन्द के यहाँ सर्विस की। और फिर मारवाड़ चले गये। तथा वहाँ संवत् १९७३ में स्वर्गवासी हुए। आपके पुत्र भीमराजजी तथा दीपचंदजी हुए। इनमें भीमराजजी २० साल की उम्र में १९५६ में स्वर्गवासी हुए। सेठ दीपचन्दजी विद्यमान हैं। आपका जन्म संवत् १९३७ में हमा। संवत् १९७४ में आपने मद्रास के बैकिंग तथा ज्वेलरी का व्यापार स्थापित किया। तथा अपनी होशियारी और बुद्धिमानी से इस व्यापार में बहुत सफलता प्राप्त की है। इस समय मद्रास में आपकी दुकान बहुत प्रतिष्ठित मानी जाती है। दीपचन्दजी खींवसरा का समाज की उन्नति की ओर अच्छा लक्ष्य है। आपने मद्रास में स्थानक बनवाने में मदद दी है। तथा इस समय भाप मद्रास स्थानकवासी स्कूल के सेक्रेटरी है। आप के नाम पर हुक्मीचन्दजी दत्तक आये हैं। सेठ कनीराम गुलाबचन्द खींवसरा, धूलिया इस परिवार के पूर्वज जेठमलजी और उनके भाई वेणीदासजी नारसर ठाकुर के कामदार थे । वहाँ से यह परिवार बडल (मारवाड़) आया। तहाँ वहाँ से लगभग १५० साल पूर्व जेठमलजी के पुत्र कनी. रामजी और तिलोकचंदजी नालोद (धूलिया के पास) भाये। और वेणीदासजी का परिवार शाई खेड़ा (नाशिक)गया। सेठ कनीरामजी के पुत्र गुलाबचंदजी तथा प्रतापमलजी और तिलोकचन्दजी के हुकमी. चंदजी हुए। इनमें सेठ गुलाबचंदजी और प्रतापचन्दजी का व्यापार धूलिया में स्थापित हमा। इन दोनों भाइयों का व्यापार संवत १९३१ में अलग २ हुआ। तथा सेठ हुकमीचन्दजी के पुत्र कस्तूरचन्दजी फकीर. चन्दजी और चौथमलजी नालोद में व्यापार करते रहे। फकीरचंदजी प्रतिष्ठित पुरुष हुए । इनका तथा गुलाबचन्दजी का संवत १९४२ में स्वर्गवास हुआ। खींवसरा गुलाबचन्दजी के नाम पर जोगीलालजी बडलू से, तथा प्रतापमलजी के नाम पर तुलसीरामजी नालोद से दत्तक आये। खींवसरा जोगीलालजी का जन्म संवत् १९३६ में हुआ। आप सेठ वेणीदासजी के प्रपौत्र है। धूलिया में भापकी दुकान सब से प्राचीन मानी जाती है । आप प्रतिष्ठित तथा समझदार व्यक्ति हैं। आपके पत्र टीकमचन्दजी. जवरीमलजी तथा सोभागमलजी हैं। भापके यहाँ सराफी व्यापार होता है। खीवसरा तुलसीरामजी के पुत्र रूपचन्दजी, तुलसीराम रूपचन्द के नाम से धूलिया में व्यापार करते हैं। तथा शेष३ भाता छोटे हैं। पह परिवार मंदिर मार्गोय भाम्नाय का मानने वाला है।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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