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________________ स्त्रींवसरा खींवसरा सरदारचंदजी उम्मेदचंदजी का खानदान, जोधपूर इस परिवार के पूर्वज खींवसरा राजाजी संवत् १६६० में जोधपुर आये तथा यहां अपना निवास बनाया। इनकी छठी पीढ़ी में खींवसरा भींवराजजी हुए। आपने जोधपुर स्टेट में कई काम किये। आपके पुत्र दौलतरामजी तथा पौत्र मुकुन्दचन्दजी हुए। खींवसरा मुकुन्दचन्दजी स्टेट सर्विस के साथ २ बोहरगत का व्यापार भी करते थे । आपकी आर्थिक स्थिति बड़ी उन्नति पर थी । कागे में आपने श्री मुकुन्द बिहारीजी का मन्दिर बनवाया। इनको स्टेट से कैफियत और मुहर प्राप्त थी । संवत् १९२९ में आपका स्वर्गवास हुआ। आपके पुत्र खींवसरा सरदारचंदजी तथा उम्मेदचंदजी नामांकित व्यक्ति हुए । खींवसरा सरदारचन्दजी जेतारण आदि के हाकिम थे । संवत् १९३९ में आपका स्वर्गवास हुआ । आपके छोटे भ्राता उम्मेदचंदजी जोधपुर स्टेट की जांच पड़ताल कमेटी के मेम्बर थे । संवत् १९७७ में आपका स्वर्गवास हुआ । आप दोनों बंधु सरकारी नौकरी के अलावा अपने बोहरगत के व्यापार को चलाते रहे। सरदारचन्दजी के पुत्र सज्जनचन्दजी एवम् वक्कमचन्दजी तथा उम्मेदचन्दजी के पुत्र किशन चन्दजी तथा बलवन्तचन्दजी हैं। इनके किशनचन्दजी का स्वर्गवास होगया है । इनके पुत्र मेघचन्दजी हैं । इन बंधुओं में इस समय बलवन्तचन्दजी तथा मेवचन्दजी महकमा खास जोधपुर में सर्विस करते हैं । तथा सज्जनचन्दजी बोहरगत का व्यापार करते हैं । आप सज्जन व्यक्ति हैं । आप को भी स्टेटे से मुहर छाप प्राप्त है। आप लोग जोधपुर के ओसवाल समाज में प्रतिष्ठित माने जाते हैं । सेठ दोंडीराम दलीचन्द खींवसरा, पूना इस परिवार का मूल निवास नाटसर ( जोधपुर स्टेट ) में है । वहाँ से सेठ जोधराजजी तथा उनके पुत्र मूलचन्दजी मूथा लगभग ८० साल पूर्व पूना जिला के सुखई नामक गांव में आये । आप संवत् १९२० के लगभग स्वर्गवासी हुए। आपके पुत्र गुलाबचन्दजी का संवत् १९३१ में तथा शिवराजनी का संवत् १९५९ में स्वर्गवास हुआ । सेठ गुलाबचन्दजी परिंचे (पूना) में व्यापार करते थे । आपके दोंडीरामजी, हीराचन्दजी, दलीचन्दजी तथा शिवराजजी के शंकरलालजी नामक पुत्र हुए। सेठ घोड़ी रामजी खींवसरा - आपका जन्म शके १८११ में हुआ । आपके हाथों से व्यापार की विशेष उन्नति हुई । भरम्भ से ही समाज सुधार की भावनाएं आपके मन में बलवती थीं । आपने सन् १९०८ में जैनोन्नति नामक पत्र निकला । सन् १९११ में पूना में एक जैन बोर्डिंग स्थापित करवाया । जिसका रूपान्तर इस समय स्था० जैन बोर्डिंग है। ज्ञान मण्डल स्थापित कर छात्रों को स्कारशिप दिलवाने की व्यवस्था की । औसर मौसर आदि के विरुद्ध आवाज उठाई। संवत् १९७४ में परिचें नामक खेड़े को आपने उपर्युक्त न समझ कर आप अपने बन्धुओं के साथ पूना चले आये । तथा यहाँ जरी और रंगीन कपड़े का व्यापार स्थापित कर अपने दोनों छोटे बन्धुओं के सहयोग से इसमें बहुत सफलता प्राप्त की। आपकी कन्या श्री नंदूबाई ओसवाल का विवाह, आपने समाज की कुछ भी परवाह न कर बहुत सादगी से किया। आपके आचरणों का अनुकरण पूना के जैन युवकों में नवजीवन का संचार करता है । १०७ ५२९
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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