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________________ प्रोसवाल जाति का इतिहास आपका स्वर्गवास २० वर्ष की आयु में हुआ। आपने भी इस फर्म के व्यापार को बढ़ाया। आपके नाम पर सेठ बिजेराजजी दत्तक आये। सेठ बिजेराजजी मूथा- आपका जन्म संवत् १९४७ में हुआ। आपही इस समय इस दुकान के मालिक हैं । आपने इस दुकान के व्यापार की अच्छी तरकी की है। आप स्थानकवासी सम्प्रदाय के अनुयायी है। आपके पुत्र सजनराजजी १५ साल के तथा मदनराजजी ९ साल के हैं। आपके यहाँ बंगलोर, मद्रास, चिदम्बरम्, त्रिरतुराई पुडो, वरधाचलम् तथा सीयाली में बेकिंग व्यापार होता है। इन सब स्थानों पर यह फर्म प्रतिष्ठित मानी जाती है। सेठ गंगारामजी की और आपकी ओर से बलूदे में एक जैन स्कूल और बोडिंग हाउस चल रहा है। इसमें भाप २ हजार रुपया वार्षिक मदद देते हैं। इसी तरह वहाँ एक अमर बकरों का ठाण है। सेंटथामस माउण्ट में आपने एक मकान स्कूल को दिया है, तथा मद्रास स्थानक, सरदार हाई स्कूल जोधपुर तथा हुक्मीचंद जैन मण्डल उदयपुर में भी अच्छी सहायताएँ दी हैं। इस परिवार को जोधपुर स्टेट की तरफ से व्याह शादी के अवसर पर नगारा निशान मिलता है। सेठ बख्तावरमल रूपराज मूथा, बंगलोर हम ऊपर लिख चुके हैं कि सेठ हंसराजजी खींवसरा के द्वितीय पुत्र सेठ बख्तावरमलजी थे । आप बलूदे से बंगलोर आये तथा यहाँ व्यापार स्थापित किया। आपने अपने ओसवाल बन्धुओं को मदद देकर बसाया, आपके समय यहाँ मारवादियों की २।४ ही दुकाने थीं। आप बड़े प्रतिष्ठित पुरुष हो गये हैं। आपके रूपराजजी तथा कुन्दनमकजी नामक दो पुत्र हुए। आप दोनों भाइयों का स्वर्गवास अल्प वय में ही हो गया। आपके कोई सन्तान न होने से मूथा कुन्दनमलजी के नाम पर चिंगनपैठ निवासी मूथा गणेशमलजी के पुत्र तेजराजजी को दत्तक लिया। आपका जन्म सम्वत् १९५२ में हुआ। आपकी दुकान बंगलोर में अच्छी प्रतिष्ठित तथा पुरानी मानी जाती है। आपके पुत्र सोहनराजजी, मोहनराजजी तथा पारसमलजी हैं। सेठ शम्भूमल गंगाराम मूथा, बंगलोर इस परिवार के पूर्वज बलूदा निवासी मूथा मानाजी का परिचय हम ऊपर दे चुके हैं। इनके बाद क्रमशः सिरदारमलजी, उत्तमाजी तथा बुधमलजी हुए । बुधमलजी के नाम पर (सीमलजी के प्रपौत्र मूथा चौथमलजी के पुत्र) शम्भूमलजी दत्तक आये। मूथा शम्भूमलजी सम्वत् १९३४ में बंगलोर आये। तथा बंगलोर केंट में दुकान स्थापित कर आपने आपनी व्यापार दूरदर्शिता से बहुत सम्पत्ति उपार्जित की। आप का सम्वत् १९७२ में स्वर्गवास हुआ। आपके नाम पर मूथा गंगारामजी सम्बत् १९५९ में दत्तक आये । आप ही इस समय इस दुकान के मालिक हैं। आपने २० हजार के फंड से देश में एक पाठशाला खोली है तथा २ हजार रुपया प्रति वर्ष इस पाठशाला के अर्थ आप व्यय करते हैं। आपने अपने नामपर छानमलजी को दत्तक लिया है। इनका जन्म सम्बत् १९५९ में हुआ। यह दुकान बंगलोर के ओसवाल समाज में सबसे धनिक मानी जाती है। बंगलोर के अलावा मद्रास प्रान्त में इस दुकान की और भी शाखाएं हैं।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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