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________________ चोरड़िया साला दयालचंदजी जौहरी-आपका जन्म संवत् १९३९ में हुला। आपने १९ साल की वय में ही जवाहरात का व्यापार शुरू किया । २५ वर्ष की भायु में भापकी धर्मपत्नी का स्वर्गवास होगया, ऐसे समय आपने विवाह न कर और नवीन उपभादर्श उपस्थित किया । कार्ड हाडिज, ख्यक माफ केनाट,क्वीन "मेरी" आदि से आपको सार्टीफिकेट प्राप्त हुए। इधर १२ सालों से आप सार्वजनिक सेवाएँ करते हैं। आपने अपने जीवन में लगभग ३ लाख रुपया मित्र संस्थाओं के लिये इकट्ठा किया। इसमें २० हजार रुपया अपनी तरफ से दिये। इस समय भाप बगभग २० प्रतिष्ठित संस्थाओं की कार्य वाहक समिति के मेम्बर प्रेसिडेंट आदि हैं। रोशन मुहल्ला आगरा के वीर विजय वाचनालय, धर्मशाला और मन्दिर के आप मैनेजर हैं। बाप दीर्घ अनुमवी और नवयुवकों के समान उत्साह रखने वाले महानुभाव हैं। भापके छोटे भाता लाला निहालचन्दनी, लाला मुबालाजी के साथ, "गुलाबचन्द लखमीचन्द" के नाम से गोटे का व्यापार करते हैं। ___ खाला छुट्टनलालजी जौहरी का परिवार-आप नामी जौहरी होगये हैं। महाराजा पटियाला धौलपुर और रामपुर में भाप खास जौहरी थे। राजा महाराजा रईस और विदेशी यात्रियों को जवाहरात तथा क्यूरियो सिटी का माल बेच कर आपने अच्छी प्रतिष्ठा प्राप्त की थी। संवत् १९६३ में आपका स्वर्गवास हमा। आपके मुन्नालालजी तथा हरकच्चन्दजी नामक पुत्र हुए। इनमें मुन्नालालजी विद्य. मान हैं, तथा गोटे का ब्यापार करते हैं। ____लाला चिमनलालजी तथा लखमीचंदजी का परिवार-काला चिमनलालजी आगरा सिटी के टेलीग्राफ ऑफिस में हेड सिगनलर थे। इनके पुत्र बाबूलालजी तथा ज्योतिप्रसादजी पेट्रोल एजंट हैं। इसी तरह लखमीचन्दजी के पुत्र माणकचन्दजी, मोहनलालजी तया छबूलालजी जवाहरात का काम करते हैं। यह एक विस्तृत तथा प्रतिष्ठित परिवार है। इस परिवार में पहले जमीदारी का काम भी होता था। इस परिवार ने आगरा रोशन मोहल्ला के श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ के मन्दिर में पच्चीकारी आदि में तथा पाठशाला वगैरा में करीब ३० हजार रुपये लगाये । लगभग ५०।६० सालों से उक्त मन्दिर की व्यवस्था इस परिवार के जिम्मे हैं। लाला इन्द्रचंद माणिकचन्द का खानदान, लखनऊ इस खानदान के लोग श्वेताम्बर जैन मन्दिर आम्नाय को मानने वाले सज्जन है। यह खान. दान करीब डेढ़सौ वर्षों से लखनऊ में ही निवास करता है। इस खानदान में लाला हीरालालजी तक के इतिहास का पता चलता है। लाला हीरालालजी के पश्चात् क्रमशः लाला जौहरीमलजी, लाला रज्जूमलजी, और उनके पश्चात् लाला इन्द्रचन्दजी हुए। भापका जन्म संवत् १९०९ का और स्वर्गवास संवत् १९५० में हुआ। आपके पुत्र लाला मानिकचन्दजी इस खानदान में बड़े बुद्धिमान और दूरदर्शी म्यक्ति हैं। भापका जन्म संमत् १९३५ में हुआ। आपने अपनी बुद्धिमानी से इस फर्म के व्ययसाय को खूब बढ़ाया। आपके इस समय दो पुत्र हैं जिनके नाम नानकचन्दजी और ज्ञानचन्दजी हैं। मानकचन्दजी का जन्म संवत् १९५९ का और ज्ञानचन्दजी का जन्म संवत् १९६१ का है।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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