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________________ श्रोसवाल जाति का इतिहास · श्रीरामो जयति श्रीगणेशजी प्रसादात् , श्री एकलिंगजी प्रसादात् (भाले का निशान) सही स्वति श्री उदयपुर सुभे सूथानेक महाराजाधिराज महाराणाजी श्री सरूपसिंघजी श्रादेशात कावड़या जैचन्द कुनणों वीरचन्द कस्य अप्रम् थारा बढ़ावा सा भामो कावड़यो ई राज म्हें साम ध्रमासु काम चाकरी करी जी की मरजाद ठेठसू य्याह म्हाजना की जातम्ह बावनी त्या चौका को जीमण वा सोग पूजा होवे जीम्हे पहेली तलक थारे होतो हो सो अगला नगरसेठ बेणीदास करसो कर्यो अर वे दर्याफ्त तलक थारे नहीं करवा दीदो आबरू सालसी दीखी सो नगे कर सेठ पेमचन्द ने हुकम कीदो सो वी भी अरज करी अर न्यात म्हे हकसर मालूम हुई सो अ तलक माफक दसतुर के थे थारो कराय्या जाजो श्रागा सु थारे बंसको होवेगा जीके तलक हुवा जावेगा पंचाने बी हुकम कर दरियो है सो पेली तलक थारे होवेगा। प्रबानगी मेहता सेरसीघ संवत् १९१२ जेठ सुद १५ बुधे x मतलब यह कि महाजनों की जाति में बावनी ( समस्त जाति का भोज ) तथा चौके का भोजन व सिंह पूजा में पहला तिकक जो कि हमेशा से भामाशाह के वंशजों को होता आया है उनी के वंशजों को होता रहे। मेवाड़ के अप्राप्य ऐतिहासिक ग्रंथ “वीर विनोद” में पृष्ठ २५१ पर लिखा है कि भामाशाह बड़ी सुरअत का आदमी था । यह महाराणा प्रताप के शुरू समय से महाराणा अमरसिंह के राज्य के २॥ तथा ३ वर्ष तक प्रधान रहा। इसने कई बड़ी २ लड़ाइयों में हजारों आदमियों का खर्चा चलाया। यह नामी प्रधान संवत् १६५६ की माघ शुक्ला को ५१ वर्ष और सात माह की उमर में परलोक को सिधारा। इसका जन्म संवत् १६०४ अषाढ़ शुक्ला .. (हि० ९५४ तारीख ९ जमादियुल अव्वल ई० स० १५४७ तारीख २८ जून) सोमवार को हुआ था । इसने मरने के एक दिन पहले अपनी स्त्री को एक बही अपने हाथ की दी और कहा कि इसमें मेवाड़ के खजाने का कुल हाल लिखा हुआ है जिस वक्त तकलीफ हो उस समय पह वही महाराणा की नज़र करना । यह खैरख्वाह प्रधान इस बही के लिखे कुल खजाने से महाराणा अमर
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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