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________________ श्रीसवाल जाति का इतिहास सेठ लखमीचन्द तोलाराम नाहटा, राजगढ़ इस परिवार के सेठ तारोचन्दजी, उदयचन्दजी, छतीदासजी और पनेवन्दजी नामक चार भाई सम्वत् १९१८ में कचोर नामक स्थान से राजगढ़ आये। इसके पूर्व ही आप लोगों का व्यापार ग्वालपाड़ा नामक स्थान में होरहा था। संवत् १९५० तक यह फर्म चलता रहा । पश्चात् सब लोग अलग २ हो गये सेठ ताराचन्दजी के हरकचंदजी एवम् गुलाबचन्दजी नामक दो पुत्र हुए। इनमें से गुलावचन्दजी, उदयचन्दजी के यहाँ दत्तक रहे । हरकचन्दजी के इस समय शिवलालजी नेतमलजी और पूरनमलजी नामक तीन पुत्र हैं जो हरकचन्द पूरनमल के नाम से कलकत्ता में व्यापार कर रहे हैं। सेठ गुलाबचन्दजी के पुत्र जेसराजजी, धनराजजी और तिलोकचन्दजी अन्य २ स्थानों पर व्यापार करते हैं। सेठ पचन्दजी के पुत्र खुमानचंदजी हुए। आपके चार पुत्र हैं जिनके नाम क्रमशः नथमलजी, सूरजमलजी, तेजकरनजी और हंसराजजी हैं। आप लोगों का व्यापार भी हरकचंद पुरनचन्द के साझे में होता है । इसके अतिरिक्त मूँगापट्टी में भी सूरजमल जैचन्दलाल के नाम से इनका कपड़े का काम होता है । नथमलजी के पुत्र का नाम जयचन्दलालजी है। सेठ छतीदासजी के पुत्र लखमीचन्दजी हुए। आपने भी कलकत्ते के अन्तर्गत साझे में कपड़े का व्यापार किया। इसमें आपको अच्छी सफलता रही। आजकल आप ब्याज का काम करते हैं । आपके तोलारामजी नामक एक पुत्र हैं। आजकल आपही व्यवसाय का संचालन करते हैं। आपके यहाँ लखमीचन्द तोलाराम के नाम से व्यापार होता है । श्री सूरजमलजी नाहटा, इन्दौर इस परिवार के पुरुष सेठ डूंगरसीजी, फतेचंदजी, जीवनमलजी और खुशालचन्दजी बीकानेर, पाली आदि स्थानों पर होते हुए उदयपुर आये । यहाँ आकर आप लोगों ने कपड़े का व्यापार किया । इसमें अच्छी सफलता रही। कुछ समय पश्चात् खुशालचंदजी के पुत्र चन्दनमलजी किसी कारणवश इन्दौर चले आये । इनके पाँच पुत्रों में से भी सूरजमलजी और सरदारमलजी शेष रहे। कुछ समय पश्चात् सरदारमजजी का भी स्वर्गवास हो गया । नाहटा सूरजमलजी इस समय विद्यमान हैं। आप बड़े मिलनसार एवम् धुन के पक्के आदमी हैं। पब्लिक कार्यों में आपका हमेशा सहयोग बना रहता है। विद्या की ओर भी आपका अच्छा लक्ष्य है। आप इस समय ग्यारह पंचों की दुकान पर काम करते हैं। आप इस समय ग्यारह पंचों की कमेटी के कार्यकारी मंडल के सेक्रेटरी हैं । सेठ हीरालाल बालाराम नाहटा, धूलिया इस परिवार का मूल निवास लहेरा बावड़ी (मारवाद ) है । आप मानने वाले हैं। देश से लगभग १०० साल पहिले सेठ रतनचंदजी नाहटा के पुत्र चन्दजी नाहटा मालेगाँव ताल्लुके के बांभनगाँव नामक स्थान में आये और वहाँ से ५०३ स्थानकवासी आम्नाय के दलपतजी और उदयधूलिया आकर आपने
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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