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________________ . . बठिया सेठ पेमराज हजारीमल बाँठिया, भीना र इस फर्म के मालिकों का मूलनिवास स्थान भीनासर (बीकानेर) में है। आप ओसवाल जाति के स्थानकवासी जैन सम्प्रदाय के सजन है। कच्चे में इस फर्म को स्थापना करीब ८५ वर्ष पहले मौजीराम प्रेमराज के नाम से हुई थी, आप दोनों सहोदर भ्राता थे। उसके पश्चात् सेठ प्रेमराजबी के पत्र सेठ हजारीमलजी मंगलचन्दजी ने उपरोक्त फर्म से पृथक होकर सं० १९३९ में प्रेमराज हजारीमलके नाम से फर्म की स्थापना की। आपके उद्योग से इस दुकान की अच्छी उन्नति हुई। हजारीमकजी का जन्म सं० १९१३ में भऔर स्वर्गवास सं. १९९९ में हुआ। मंगलचन्दजी का जन्म सं० १९२० में हुभाआपका देहावसान सं० १९५० में अल्पावस्था में ही हो गया। आप बड़े उदार, तथा सदाचारी. पुरुष थे। इनके श्री रिखबचन्दजी दत्तक लिये गये थे। आपका जन्म १९२७ में और स्वर्गवास सं. १९६३ में हुआ था। इस समय सेठ रिखबचन्दजी के पुत्र श्रीयुत बहादुरमलजी हैं। आप बड़े योग्य, तथा उदार पुरुष हैं। भापके इस समय तीन पुत्र हैं जिनके माम क्रमशः श्रीयुक्त तोलारामजी श्यामलालजी और वन्शीलालजी है। फर्म का कार्य आपकी तथा भापके बड़े पुत्र की देख भाल में सुचारुरूप से चल इस खानदान की दान-धर्म और सार्वजनिक कार्यों की ओर बड़ी रुचि रही है। श्री हजारीमलजी ने अपने जीवन काल ही में एक लाख इकतालीस हजार रुपये का दान किया था जिससे इस समय कई संस्थाओं को सहायता मिल रही है। इसके पहले भी भाप अनेकों बार अपनी दानवीरता का परि. चय समय २ पर देते रहे हैं। आपकी ओर से भीनासर में एक जैन बवेताम्बर औषधालय भी चल रहा है। इसके भतिरिक्त यहाँ की पिजरापोल की विल्डिङ्ग भी आप ही के द्वारा प्रदान की है तथा भोसवाल पन्चायती के मकान की भूमि भी आपने ही प्रदान की है। इसके अतिरिक्त यहाँ के व्यवहारिक स्कूल की बिल्डिङ्ग भी मौजीराम पनालाल की फर्म के मालिक सेठ हमीरमलजी, कनीरामजी की और भापकी भोर से ही प्रदान की गई है और आपने ९० १९१1 साधुमार्गी जैन हितकारिणी संस्था में दान दिया है। . सेठ बिरदीचन्दजी बांठिया का परिवार, बीकानेर इस परिवार के लोग बाईस सम्प्रदाय के मानने वाले हैं। इसमें सर्व प्रथम सेठ साहबसिंगजी हुए । आपके पुत्र फूलचन्दजी बीकानेर ही में रहकर व्यापार करते रहे। आपके पुत्र जोरावरमलजी और तिलोकचन्दजी हुए। इनमें से तिलोकचन्दजी का परिवार प्रतापगढ़ चला गया। जिसका परिचय प्रतापगढ़ के बांठिया परिवार के नाम से दिया जा रहा है। सेठ जोरावरमलजी बीकानेर से व्यापार के निमित्त मद्रास गये और वहाँ अग्रेजों के साथ बैंकिग व्यापार प्रारंभ किया। इसमें आपको अच्छी सफलता रही। वहीं आपका स्वर्गवास हो गया । आपके बिरदीचन्दजी और लखमीचन्दजी नामक दो पुत्र हुए । लखमीचन्दजी का अल्पायु ही में स्वर्गवास हो गया। सेठ बिरदीचन्दजी पहले पहल कलकत्ता आये और अपने पुत्र किशनमलजी के साथ बिरदीचन्द १९५
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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