SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1071
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सेठिया श्री सेठ चौथमलजी देश से चलकर व्यापार के लिये बङ्गाल के भूमी जिले में गये और वहां पूरनचन्द हुकुमचन्द संचेती के यहां नौकरी की । आपके संतान न होने से आपके नाम पर आपके भतीजे आसकरणजी दत्तक लिये गये । चौथमलजी के भाई सेठ चिमनीरामजी कलकत्ते में हरिसिंह सन्तोषचन्द की दुकान पर नौकरी करते रहे । नौकरी से कुछ सम्पत्ति जोड़कर आपने लोगों के साझे में हुलासचन्द भासकरण के नाम से कपड़े का व्यापार शुरू किया । इस समय आप इसी नाम से अपना स्वतन्त्र व्यापार करते हैं। संवत् १९७३ से व्यापार का भार अपने पुत्र हुलासचन्दजी को देकर आप रिटायर्ड लाइफ व्यतीत कर रहे हैं । आप सरदारशहर में रहते हैं । 1 सेठ आसकरणजी और हुलासचन्दजी कलकते में अपनी फर्म का योग्यता पूर्वक संचालन कर आपकी दुकान १८८ सूता पट्टी में है । मेसर्स गुलाबचंद धनराज सेठिया रिणी इस खानदान के लोग रिणी में बहुत समय से रहते हैं। इनमें सेठ रामदयालजी के चार पुत्र हुए इनमें से उपरोक्त वंश सेठ गुलाबचन्दजी का है । रहे हैं । सेठ गुलाबचन्दजी का जन्म संवत् १९१२ में हुआ । आप देश से व्यापार के लिये बंगाल गये और वहां मैमनसिंह में दुधोरियों के यहां सर्विस की । आपके रावतमलजी, धनराजजी, हीरालाल हुआ 1 आप जी और हुकुमचन्दजी नामक चार पुत्र हुए। सेठ रावत्मलजी का जन्म सं० १९१७ में १९४९ में कलकत्ता गये और अपने भाई धनराजजी के साथ रावतमल धनराज के नाम से व्यापर शुरू किया इसके पश्चात आप दोनों भाई अलग अलग होगये । सेठ रावतमलजी का स्वर्गवास १९६७ में होगया । इनके मोहनलालजी और हनुमानमलजी नामक २ पुत्र हुए । सेठ धनराजजी ने अपने भाई से अलग होकर भूशमल धनराज के नाम से व्यापार आरम्भ किया फिर सं० १९६६ से ये गुलाबचन्द धनराज के नाम से व्यापार करने लगे । इस समय आप के यहां इसी नाम से व्यापार होता है । आपके इस समय मंगलचन्दजी, बुधचन्दजी, चम्पालालजी और ताराचंदजी नामक चार पुत्र हैं । सेठ रावतमलजी के पुत्र सोहनलालजी भी फर्म के पार्टनर हैं । आप बड़े योग्य हैं । हनुमानमलजी दलाली का काम करते हैं। इस फर्म का १२ नारमल लोहिया लेन कलकत्ता में बड़े स्केल पर देशी कपड़े का व्यापार होता है और इरगोला ( बङ्गाल ) में इसकी शाखा जूट का व्यापार करती है। सुजानगढ़ का सेठिया परिवार इस खानदान का इतिहास सेठ शोभाचन्दजी को प्रारम्भ होना है। उनके पुत्र किशनचन्दजी हुकुमचन्दजी, बींजराजजी, देवचन्दजी, और चौथमलजी हुए, इनमें से यह खानदान सेठ चौथमलजी का है। सेठ चौथमलजी का जन्म १९२२ में हुआ, पहले आप खेती बाड़ी के द्वारा। अपनी गुजर करते थे कुछ -१८७
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy