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________________ ओसवाल जाति का इतिहास उसके पास और कोई मार्ग उसकी रक्षा का न था। भतएव वह अपने बाल-बच्चों को लेकर लाखोटा की बारी से भाग गया। इस प्रकार मेहता चीलजी की बुद्धिमानी एवम् चतुराई से चित्तौड़ पर फिर से शुद्ध शिशोदिया बंश का राज्य कायम हो गाया। भारमलजी कावड़िया भारमलजी ओसवाल जाति के कावड़िया गौत्रीय सजन थे। ये मेवाड़ उद्धारक भामाशाह के पिता थे। शुरू २ में ये अलवर से बुलाये जाकर रणथम्भोर के किलेदार नियुक्त हुए । राणा उदयसिंह के शासनकाल में ये उनके प्रधान पद पर प्रतिष्ठित हुए। किलेदार से क्रमशः प्रधान पद पर पहुँचमा इस बात को सूचित करता है कि ये बड़े बुद्धिमान, स्वामिभक्त और राजनीति कुशल थे। सर्वस्व त्यागी भामाशाह इतिहास प्रसिद्ध त्यागमूर्ति वीरवर भामाशाह का नाम न केवल मेवाड़ में प्रत्युत सारे भारतवर्ष में इतना प्रसिद्ध हो गया है कि उनके सम्बंध में कुछ भी लिखना सूर्य को दीपक दिखलाने के सदृश निरर्थक है। स्वामि-भक्ति और देश-भक्ति का जो आदर्श उदाहरण इस पुरुष पुंगव ने रखा था वह इतिहास के अन्दर बड़ा ही अद्भुत है । राजस्थान केशरी स्वाधीनता के दिव्य पुजारी प्रातः स्मरणीय महाराणा प्रताप के नाम को आज भारतवर्ष में कौन नहीं जानता । माता के इस दिव्य पुजारी ने, स्वाधीनता के सच्चे उपासक ने अपने देश की आजादी के लिये, अपने आत्म गौरव की रक्षा के लिये; अपने राज्य, अपनी दौलत और अपने एशो-आराम को मुट्ठीभर धूल की तरह विर्सजन कर दिया था । आजादी का यह मतवाला उपासक अपने देश की स्वाधीनता के लिये जंगल २ और रास्ते २ की खाक को छानता फिरता था। इन भयंकर विपत्तियों के अन्दर यह वीरात्मा हमेशा पहाड़ की तरह अटल रहा. मगर संयोग की बात है एक समय ऐसा आया जब कि भयंकर से भकर विपत्तियों में भी अटल रहने वाले इस वीर को भी एक छोटी सी घटना ने विचलित कर दिया, इसके हृदय को चूर २ कर डाला । बात यह हुई कि एक दिन जंगली भाटे की रोटियाँ इन लोगों के लिये बनाई गई। इन रोटियों में से प्रत्येक व्यक्ति के हिस्से में एक २ रोटी-आधी सुबह और आधी शाम के लिये-आई । राणाजी की छोटी लड़की अपने हिस्से की उस भाधी रोटी को खा रही थी कि इतने में एक जंगली दिलाव आया और उसके हाथ से रोटी छीन ले गया। जिससे वह लड़की एक दम चीत्कार कर बैठी और भूख के मारे करुण-क्रंदन करने लगी। इस आकस्मिक घटना से महाराणा का
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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