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________________ राजनैतिक और सैनिक महत्व सम्मान के साथ शरण दी, और उसे अपना भतीजा कह कर प्रसिद्ध किया। जब कुमार उदयसिंह होशियार हो गया तब वीरवर आशाशाह ने कई सरदारों की मदद से उसे उसका राज सिंहासन दिला दिया और इस महान् पुरुष ने इस प्रकार से मेवाड़ के नष्ट होते वंश को बचा लिया। मेहता चीली यह घटना उस समय की है जब कि बनवीर ने अपने षड़यंत्रों से महाराणा के स्थान पर चित्तौड़ में अपना अधिकार स्थापित कर लिया था और महाराणा उदयसिंहजी को वित्तौड़ छोड़ने के लिये बाध्य होना पड़ा था। इसी समय चित्तौड़गढ़ के किलेदार जालसी मेहता के बंशज चीलजी थे । चीलजी मेहता बड़े बुद्धिमान् स्वामिभक और वीर प्रकृति के पुरुष थे। इन्हें बनवीर की अधीनता बहुत खटक रही थी । ये कोई सुयोग्य अवसर की प्रतिक्षा में थे कि जिससे फिर चित्तौड़ पर महाराणा का अधिकार हो जाय। उधर महाराणा उदयसिंह अबली में जाकर एक स्थान को पसंद कर वहीं रहने लगे। यही स्थान आजकल उदयपुर के नाम से प्रसिद्ध है। महाराणा के साथ आने वाले सरदारों के उत्साह से इन्होंने सेना का संगठन करना प्रारम्भ किया। अपने कतिपय सरदारों के साथ कूच कर रास्ते में बनवीर के कई गाँवों को हस्तगत करते हुए महाराणा चित्तौड़ पहुंचे। मगर चिचौड़ के किले को विजय करना हंसी-खेल नहीं था साथ ही इनके पास तोपखाने का भी उचित प्रबन्ध नहीं था। ऐसी परिस्थिति में किले को तोड़ना कठिन ही नहीं वरन असंभव था। कहना न होगा कि इस समय कुम्भलगढ़ के किलेदार वीर आशाशाह ने चीलजी मेहता को अपनी स्वामि भक्ति के लिये कहा और कहा कि यही समय वास्तविक सेवा का है। अस्तु । यह हम ऊपः लिखही चुके हैं कि मेहता. चीलजी किसी सुयोग्य अवसर की प्रतिक्षा में थे। अतएव फिर क्या था। उन्होंने युक्ति रचकर बनवीर से कहा कि महाराज किले में खाद्य-द्रव्य बहुत कम रह गया है अतएव यदि अज्ञा करें तो रात के समय किले का दरवाज़ा खोलकर सामग्री मंगवाली जाय । बनवार को यह युक्ति सोलह आने जंच गई। यह देख मेहता चीलजी ने सारे समाचार गुप्त रूप से प्रसिद्ध स्वामिभक्त आशाशाह को लिख भेजे । __ योजनानुसार ठीक समय पर किले का दरवाज़ा खोल दिया गया। उधर महाराणा के साथी वीर राजपूत सरदार एवम् योद्धा तैयार थे ही। बस, फिर क्या था, बड़ी शीघ्रता से ये लोग हजार पाँच सौ भैसों एवम् बैलों पर सामान लाद कर किले के फाटक में घुस गये। दाजे पर अधिकार कर हमला बोल दिया। चारों ओर घमासाच युद्ध प्रारम्भ हो गया । बनवीर हक्का-बक्का हो गया। केवल भागने के सिरा
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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