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________________ श्रोसवाल जाति का इतिहास सेठ मूलचन्द सोभागमल गोलेछा, फलोदी गोलेछा रामचन्द्रजी के कल्याणमलजी, इन्द्रचन्दजी, अमोलकचन्दजी, सरदारमलजी तथा चंदनमलजी नामक ५ पुत्र हुए। इनमें से गोलेछा इन्द्रचन्दजी ने संवत् १९१३।१४ में कारंजा (वरार) में जाकर दुकान स्थापित की । इन भ्राताओं का कार्य संवत् १९४० तक सम्मिलित चलता रहा । गोलेछा चन्दनमलजी का स्वर्गवास सम्वत् १९५७ में हुआ। गोलेछा चन्दनमलजी के मुलचंदजी, सोभागमलजी, पुनमचन्दजी और दीपचन्दजी नामक ४ पुत्र हुए। मूलचन्दजी का जन्म सम्वत् १९२७ में, सोभागमलजी का १९३८ में, पूनमचन्दजी का १९४३ में और दीपचंदजी का जन्म १९४७ में हुआ । आप लोगों का कारवार कारंजा (बरार) में रामचन्द्र चंदनमल के नाम से और बम्बई में मूलचंद सोभागमल के नाम से होता है। कारंजा में कपड़ा और बेकिंग व्यापार के अलावा आपने कृषि और जमीदारी का कार्य भी बढ़ाया है। सम्वत् १९६४ में गोलेछा दीपचन्दजी का स्वर्गवास हो गया। गोलेछा सोभागमलजी के प्रबोध से श्री पसारामजी कारंजा वालों ने ओसियां बोर्डिङ्ग को ५ हजार रुपया नगद दिया तथा प्रसारामजी के स्वर्गवासी होने के पश्चात् उनकी सारी सम्पत्ति बोर्डिङ्ग के लिये प्रदान करवाई। इसका मृत्यु-पत्र लिखा लिया है। इस समय सोभागमलजी के पुत्र कन्हैयालालजी तथा सम्पतलालजी और पूनमचन्दजी के पुत्र गुलाबचन्दजी हैं। सेठ प्रतापचंद धनराज गोलेछा, फलोदी फलोदी निवासी गोलेछा टीकमचंदजी के २ पुत्र हुए। उनके नाम क्रमशः हंसराजजी तथा बख्तावरचन्दजी गोलेछा थे। गोलेछा हंसराजजी का जन्म संवत् १८८७ में हुआ,तथा संवत् १९१८ में वे फलौदी से व्यवसाय निमित्त जबलपुर गये, और वहां हंसराज वस्तावरचन्द के नाम से घृटिश रेजिडेंट के साथ लेनदेन का कार्य आरम्भ किया। पीछे से इनके छोटे भ्राता बख्तावरचन्दजी भी जबलपुर गये, तथा इन दोनों माताओं ने अपने धन्धे को वहाँ जमाया । गोलेछा हंसराजजी के प्रतापचंदजी तथा धनराजजी नामक २ पुत्र हुए, जिनमें से प्रतापचन्दजी, गोलेछा बख्तावरचन्दजी के नाम पर दत्तक गये । हंसराजजी का संवत् १९६० में तथा बख्तावरचन्दजी का उनके प्रथम स्वर्गवास हुआ। गोलेछा प्रतापचन्दजी का जन्म संवत् १९२९ में तथा धनराजजी का संवत् १९३३ में हुआ। गोलेछा प्रतापचन्दजी फलोदी तथा जबलपुर के प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं। इस समय आप जबलपुर सदर बाजार जैन मन्दिर के व्यवस्थापक है। आपके छोटे भ्राता धनराजजी गोलेछा जबलपुर कन्टून्मेन्ट बोर्ड के मेम्बर थे, उनका स्वर्गवास संवत १८८२ में हुआ।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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