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________________ गोलेका भग डेढ़ दो लाख रुपये लगाये । आप जैन श्वेताम्बर मित्र मंडल के प्रेसिडेंट थे। संवत् १९७२ में भापने 'निहालचन्द नेमीचन्द' के नाम से सोलापुर में कपड़े व सराफे की दुकान खोली । इस प्रकार प्रतिष्ठा पूर्वक महत्वपूर्ण धार्मिक जीवन बिताते हुए संवत १९६९ की बेठ सुदी १४ को मापका स्वर्गवास हुआ। आपके गोलेछा नेमीचंदजी तथा गोलेछा गुलाबचंदजी नामक २ पुत्र हुए। ___ गोलेछा नेमीचन्दजी-आपका जन्म संवत् १९४७ में हुआ फलोदी के मोसवाल समाज में आप अच्छे प्रतिष्ठित व्यक्ति समझे जाते हैं आपके पुत्र मनोहरचन्दजी ने मेट्रिक तक अध्ययन किया है। भाप उत्साही युवक हैं। तथा सोलापुर जैन यूथलीग के प्रेसिडेट हैं। इनसे छोटे वस्तीचंदजी जोधपुर हॉई स्कूल में तथा मंगलचन्दजी फलोदी में पढ़ रहे हैं। ___गोलेछा गुलाबचन्दजी-आपका जन्म संवत् १९५५ में हुभा था। आप बड़े विद्या प्रेमी तथा होनहार नवयुवक थे। मापने फलोदी में एक जैन लायब्रेरी का स्थापन भी किया था, दुर्भाग्यवश २५ वर्ष की अल्पायु में भापका शरीरावसान हो गया। आपके पुत्र हीराचन्दजी, तिलोकचंदजी एवं अनोपचन्दजी इस समय जोधपुर में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। सेठ जीवराज अगरचन्द गोलेछा, फलोदी गोलेछा बहादुरचन्दजी के जीवराजजी बदनमलजी और सतीदानजी मामक ३ पुत्र हुए। इनमें जीवराजजी का जन्म लगभग संवत् १९३२ में हुआ। गोलेछा जीवराजजी व्यवसाय के निमित्त फलौदी से बम्बई की ओर गये । संवत् १९५० के लगभग आपने बम्बई में दुकान खोली। संवत् १९५९ में भापका स्वर्गवास हुआ। आपके अगरचन्दजी, जोगराजजी, रतनचन्दजी और लालचन्दजी नामक पुत्र हुए। इनमें से अमरचन्दजी का स्वर्गवास संवत् १९०५ में तथा लालचन्दजी का उसी साल आसोज सुदी • को ( इन्फ्ल्यु एन्झा में ) हुआ। गोलेछा भगरचन्दजी के पुत्र गुलाबचन्दजी हैं। गोलेछा जोगराजजी का जन्म संवत् १९४६ में हुआ। भापके हाथों से दुकान के कारवार और इजत को तरक्की मिली । संवत् १९८८ की फागुन सुदी ३ के दिन आपने जैसलमेर का संघ निकाला । आपके छोटे भ्राता रतनचन्दजी का जन्म संवत् १९४८ में हुआ । ___ गोलेछा गुलाबचन्दजी, शिक्षाप्रेमी, शांतप्रकृति तथा उत्साही नवयुवक हैं। इधर २ सालों से भाप फलौदी म्युनिसिपेलिटी के मेम्बर हैं । आपका कुटुम्ब फलौदी के मोसवाल समाज में अच्छा प्रतिष्ठित माना जाता है। इस परिवार की बम्बई में विठ्ठलवाड़ी में जीवराज अगरचन्द के नाम से तथा उटकमंड में जोगराज समरथमल के नाम से दुकानें हैं जिन पर बेकिंग और कमीशन का काम होता है।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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