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________________ ओसवाल जाति का इतिहास की उम्र इस वफ १२ साली। इनके ५ पुत्र रामलालजी, पेमचंदजी, सम्पतलालजी, हेमचंदजी आदि हैं । यह खानदान शुरू से अब तक श्री जैन श्वेताम्बर संवेगी ( मूर्ति पूजक ) है। झाबक कपूरचंदजी का खानदान (मंगलचंदजी शिवचंदजी झाबक मद्रास) रायसिंहजी के बड़े भाई शावक कपूरचन्दजी का उल्लेख ऊपर आ चुका है । आप संवत् · १८६४ में अमरसीजी उड्डा को फर्म पर बीकानेर चले गये। उसके पश्चात् संवत् १८६८ में आप उनकी तरफ से हैदराबाद गये । वहां अमरसी सुजानमल फर्म को स्थापित किया । करीब १५ वर्ष रह कर आपने उस फर्म की बहुत तरक्की की। आप बडे बुद्धिमान और प्रतिभाशाली थे। संवत् १८४४ में आप का देहान्त होगया। इनके केशरीचन्दजी और करणीदानजी नामक दो पुत्र हुए। केसरीचंदनी का जन्म संवत् १८६५ में और मृत्यु संवत् १९२२ में हुई। इन्होंने संवत् १९०७ तक सेठ सुजानमलजी के उड्डा के चीफ़ एजेण्ट का काम किया। संवत् १९०० में आप हैदराबाद में उक्त सेठजी की दुकान पर गये और वहां पर १५ बरस रहे। इस समय में आपने इस फर्म की अच्छी उन्नति की। हैदराबाद के मारवाड़ी समाज और राजदरबार में आपकी अच्छी इज्जत थी। आप बड़े बुद्धिमान सुशील और उदार सज्जन थे। भआपके रेखचंदजी और मगनमलजी नामक दो पुत्र हुए । रेखचंदजी का जन्म संवत् १९०१ में और मृत्यु संवत् १९३७ में हुई। संवत् १९२५ तक आप बीकानेर में उदयमलजी के पास रहे और पश्चात् उनकी हैदराबाद दुकान पर चीफ एजण्ट होकर गये। आप भी योग्य, बुद्धिमान और उदार ग्यक्ति थे। इनके एक पुत्र कानमलजी हुए जो केवल १६ वर्ष की उम्र में स्वर्गवासी होगये। ___ झाबक मगनमलजी-आपका जन्म संवत् १९०१ में और मृत्यु १९६२ में हुई। संवत् १९३७ तक ये बीकानेर में सेठ उदैमलजी के यहाँ चीफ एजण्ट रहे। संवत् १९२९ में उदैमलजी उड्डा का देहान्त होजाने से तथा सेठ चांदमलजीकी उम्र केवल ३ वर्ष की होने से उनका सब काम आपको सम्हालना पड़ा। पाचात् १९३० से १९६२ तक आप मेसर्स अमरसी सुजानमल की हैहराबाद दुकान पर काम करते रहे। भाप बड़े व्यापार कुशल और बुद्धिमान व्यक्ति थे, उर्दू फारसी के आप अच्छे जानकर थे । दुकान के मालिक आपकी बड़ी प्रतिष्ठा और इज्जत करते थे। आपके मंगलचन्दजी नामक एक पुत्र हुए। झाबक मंगलचंदजी-आपका जन्म संवत् १९३२ के भाद्रपद में हुआ। भाप बड़े बुद्धिमान, सुशील और परोपकारी व्यक्ति हैं। ममास के ओसवाल समाज में भापकी बड़ी प्रतिष्ठा है। पंचायती के सब काम आपकी दुकान पर होते हैं। भापका हृदय बड़ा कोमल है। और परोपकार के कार्यो
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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